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________________ प्रतिष्ठा १२७ PRERNAGARISHNASALARISH वृत्तेऽष्टावितरे तु षोडश ततो वृत्ते चतुर्विंशतिः ___ ऋद्धीनामुदयाद गणेशगदितं यंत्रं गणेशाभिधं ॥ ४०१॥ पध्यमैं षट्कोण यंत्र करे, ताके मध्य ॐ अहते नमः' लिखे, ता चक्रके वहिर्भागमैं 'अप्रतिचक्रे विचक्राय फट् स्वाहा' ऐसा लिखै, ताके अग्र तीन वलय, तहां ॐ ह्रीं णमो जिणाणं इत्यादि पाठ तथा ॐ हीं है भिन्नतोदराणां इत्यादि तथा ॐ हों उग्गतवाणं इत्यादि वीर बड्दवाणं इत्यंत अठतालीस ऋद्धि क्रमतें लिखै । पीर्छ ह्री-वेष्ठित क्रौं निरुद्ध करै। येह गणेश-यंत्र है॥ ४.१॥ यः प्रांशुधीः प्रतिदिनं जिनविंबसंस्थाऽभ्यर्णेऽर्चयन् जपति गाणममुं त्रिकालं। देवेंद्रद्वंदरचितांजलिकुड़मलश्रीपूज्यांहिपद्मयुगलाः शिवमावृणीते ॥ ४०२॥ जो प्राणी जिनविच आगें प्रति दिन गणेशमंत्र जप-पूर्वक येह यंत्र पूज, ताके सकल दुरित दूर होंय अर निश्चयस लक्ष्मी पावै है ॥४०२॥ (इस यंत्रका आकार पृथक् दिया गया है) - अथ वर्धमानयंत्राधिकारः॥६॥ अब बयान-यंत्र कहैं हैं, भक्त्यंतोऽर्हमनास्त्रिलोकजिनभूस्वाम्युत्पुटस्थस्वरे रावृत्योर्ध्वपुटे रविप्रमगृहे वर्गाष्टकावर्जितं । सिद्धाचार्यगुरूपदेष्टपदकं दत्वा चतुर्थ्यन्तकं स्वाहान्वीतमिदं नमामि महितं श्रीवर्धमानाख्यया ।। ४०३ ॥ ॐकारके मध्य है बीज ताकू हीं वेष्टित करै, ताकू है वेष्टित करै, फिर हों-वेष्टित करै, ताक् खरन करि वेष्टित करै पीछे वलयमें द्वादश | कोष्टक, तहां ॐ हीं है वर्द्ध मानाय' लिखि अष्ठवर्ग लिखे । अवशिष्टम सिद्ध आचार्य उपाध्याय साधु-मंत्र लिखै। पीछे वलय देय वद्ध मानमंत्रकों चेष्टन करै, फिरि ह्रीं क्रौं निरोधन करै॥ ४०३ ॥ RECORRECALLECCASESSISALCASSACHES Jain Educational onal For Private & Personal Use Only AM halibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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