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________________ -- - भतिष्ठा 3MuruaamaHearerana SCASSES BRIORREARRELSteel%955SECRUIRECOGRESAMRECORREARS जो बडा सिद्धचक्र नमस्कार करै है, सो पुरुष सर्वरोगानें हनै है अरु सिद्ध रसायनादि गुटिकाने प्राप्त होय है। जैसे श्रोगिरनारि पर्वतहैं। का शिखरमें अनंतवीर्य स्वामीकी ज्यों पांडित्यगुणनैं बहु प्रकार धारण करै है ॥३७॥ इति श्रीहसिद्धचक्रोद्धारः। (इसका आकार पृथक् दिया गया है) राज्यं देयं शिरो देयं सर्वसंपत्तिरुत्तमा । चक्रवर्तिपदस्थापि न देयं सिद्धचकूकं ॥ ३६८ ॥ विनीताय सुशांताय ब्रह्मचर्ययुताय च । निजशिष्यविशिष्टाय देयं तदपि चावृतं ॥ ३६६ ॥ यदि निःशीलताभाजे ह्यविनीताय दीयते । तदाऽपमृत्युमाप्नोति निरये घोरवेदनाम् ॥ ४०॥ तथा राज्य तो दे देना अरु मस्तक भी दे देनो अर चक्रवर्तिपद संपदा हू दे देनो, परंतु वहत्सिद्धचक्रयंत्र यंत्र नहीं देना। अरू देना तौजो || अपना निज शिष्य है अर विनयवान है अर शांतपरिणामो है घोर ब्रह्मचय-संयुक्त है, ताके अर्थि प्रतिज्ञा-पूर्वक देना। जा कदाचित अविनोत कुशीलवानकदे देवे, नौ आपकी अपमृत्यु होय, नरकमें घोर वेदना पावं ॥३५-४००॥ अथ गणाधरवलययंत्रोद्धारः ॥८॥ अब गणपरवलययंत्र कहें हैं, षट्कोणे प्रणवादिमर्हमभितः कोष्ठे वहिःसंधिषु द्वादश्यप्रतिचक्रफड्गमनुना क्लुप्तासुलेख्या ततः । - COOKES Jain Educati Thional For Private & Personal use only D elibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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