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________________ गर्भादिपंचभविकेषु त्रिलोकसारं पूर्व समय॑ विधिना तत उत्तराणि । कर्माणि संवितनुते परमार्थमार्गे नो प्रच्यवो भवति पूजयतो नरस्य ॥ ३८६ ॥ प्रतिष्ठा-विधान में पंचकल्याण होय हैं, तिनमें त्रैलोक्यसार यंत्रका प्रथम पूजन करि पीछे उत्तम कर्यका कार्य करे, ताके कोई प्रकार क्षति नहीं होय है ॥३८॥ (इस यंत्रका आकार पृथक् दिया गया है ) अथ यंतेशयंत्रोद्धारः॥५॥ अब यंत्रेश नाम यंत्र कहिये हैं: अंतोऽर्हत्गजरुद्रमात्रिभुवन क्लीं शांतिपुष्टिंकुरु द्विः स्वाहा परितोऽब्जषोडशदले पंचेद्यहोमामृतैः। क्ष्वी वं हं ह्यमृतेनवेष्टयममुना विश्वक् रमाञ्यंगयो ही वेष्टया कलशेन च क्षितिभुजा यंत्रेशमेवंविधं ॥ ३६॥ मध्य कर्णिकामै ॐ हैं गज रुद्र कहिये क्रौं रमा श्रीं त्रिभुवन ही अरु क्लीं अग्रे शांति पुष्टिं कुरु कुरु स्वाहा, ऐसे लिखें। फिर वलयमैं | है षोडश बलयमै असि आ उ सा स्वाहा, ह्रीं वीं वं मंतं पंद्रां द्रीं क्लीं ब्लू ऐसे लिखै अरु पीछे वलयमैं जलमंडलमैं पार्थ मैं वं, अधः | ऊर्द्ध मैं पं पं मध्यमैं ह्रीं श्रीं ह्रीं लिखे, पृथ्वीमंडल ऐसा यंत्रेश नामक यंत्र है॥ ३६॥ याका फल ऐसा है कि विद्याः प्रसाधयतुमर्हति योऽत्र धीमान् यतेशमुत्तममिदं प्रथमं समय॑ । ___ एतन्मनुं जपति शास्त्रगमित्ववाग्मित्वाद्यबुधिं तरति तर्कवितर्कणोद्धः॥ ३६१ ॥ जो बुद्धिमान् पुरुष कोई उत्तम विद्यानै सिद्धि करै सो प्रथम इस यंत्रेशक पूजि अरु कर्णिकागत मंत्रजपे, सो शास्त्रित्व वाणीकी चतुराई आदि श्रु तांबुधिर्ने तर्क संयुक्त करै॥३१॥ (इस यंत्रका आकार पृथक् दिया गया है) PBRUARRECOREOGGERUPER554 - Jain Educa t ional For Private & Personal Use Only Adelibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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