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प्रतिष्ठा
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अनाहत स्वरूपमें ‘अर्हदद्भ्यो नमः' ऐसा लिख; पाछें ह्रींकार वलय, पीछें नव कोठामें पंचपरमेष्ठी पद अरु चैस चखालय श्रागम धर्म स्थापन करि, ॐ ह्रीं आदि चतुर्थ्यंत पद अग्रमें नमः अंतमें मंत्र स्थापन करें। ह्रीं वेष्टित क्रौं रुद्ध करें ॥ ३८६ ॥ याका फल, -
यः पूजयेदतुलभक्तिभरेण पूजायंत्रं त्रिकालजपयुगविधिना मनुष्यः । तस्यार्थसिद्धिपरिवृद्धिरनर्थहानिर्नित्यं करामलतले लुठति प्रसह्य ॥ ३८७ ॥
जो प्राणी अतुल भक्ति करि त्रिकाल इस यंत्र पूजै उस मनुष्य के मनोरथकी सिद्धि अरु अनर्थकी हानि स्वतः ही करतल में बलात्कारतें ठै (आय प्राप्त होय ) है ॥ ३८७ ॥
विघ्नहरं यत्रं ताम्रपत्रे लिखित्वा वेद्यां प्रतिष्ठ यसंनिधाने स्थाप्य अन्यानि यंत्राणि तत्तत्कल्याणविधिषूपयुक्तानि भविष्यन्तीति स्पष्टमग्रे लिखिष्यामीति दिक् ॥
अब कल्याण-यंत्र कहै हैं:
( इसका आकार पृथक दिया गया है )
अथ श्रीकल्याणयंत्रोद्धारः ॥ ४ ॥
मध्येऽहं प्रणवोत्पुटं त्रिभुवनक्लींकारवेष्टयं ततः
पार्श्वे पंचशरद्वयं वहिरिते वृत्तेऽष्टकोष्ठान्विते । संपुटितानि मन्मथमहालक्ष्मीश्रुतानि क्रमात् विश्वेशांकुशयोः स्मृतिरिदं त्रैलोक्यसाराभिधं ॥ ३८८ ॥
मध्यवृत्त ॐकारका पुटमें है ऐसा जिन बीज, फिर वलय देय ह्रींकार क्लींकारका वलय है; पीछे वलय में पंचवाण ह्रां ह्रीं क्लीं ब्लू सः, तथा ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रः, अरु बाह्य वलय में आठ कोटा हैं तिनमें ॐ ह्रीं करि संपुटित क्लींकार ऐंकार अग्र गर्भ जन्म-तप- ज्ञान - निर्वाण पद चतुथ्यत मोत ऐसा पीछे ह्रीं ष्टित क्रौंकार रुद्ध, यह त्रैलोक्यसार यंत्र है ॥ ३८८ ॥ याका फल कहैं हैं:
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पाठ
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