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________________ F A 18| घातय घातय परिविघ्नान स्फोटय स्फोटय सहसखंडान् कुरु कुरु परमुद्रा छिंद छिंद परमंत्रान् भिंद भिंद क्षा संवः फट् स्वाहा ॥ अनन सिद्धा प्रतिष्ठान नभिमंत्र्य सर्वविघ्नोपशमार्थ सर्वदितु क्षिपेत् ॥ । सो मंत्र ॐ हीं णमो अरहताणं' इसादि नव वार करै। पीऊँ प्रतिक्रमण चतुर्दिशा प्रति करि अपना दोषांनै चितारै अर दोषांकी गर्दा करै, आगामी कालमैं निंदा करै, फिरि हृदय आदिमें शिरका वामभाग ताई विचारै। फिरि तिन मंत्रनने शिरका पूर्वभाग, दक्षिणभागमें, पश्चिमभागमैं , उत्तरभागमैं, अधोभागमै अर्थात् ग्रीवा उपरि थापै । बहुरि ॐ नमोऽर्हते सर्व रक्षेति' इस मंत्र करि पुष्प अक्षत मंत्र सप्त वार, परिचारक जे समीप रहनेवारे सामग्री संपादक आदि, तिनके मस्तकपरि क्षेपै । फिरि पुष्पाक्षत, ॐ ह फट किरिटी आदि मंत्र करि अभिमंत्रित करि सर्व विघ्ननका निवारणार्थ सर्व दिशामै छेपे । KHEREAKERRORRECORREHREVIEW अथ मातृकान्यासः। अकारादिक्षकारांता वर्णा प्रोक्तास्तु मातृकाः। सृष्टिन्यासः स्थितिन्यासः संहतिन्यासतस्त्रिधा ॥ ३७६ ॥ मातृका नाम अकारादि क्षकारांत वर्णका है, ताका तीन क्रम है-सृष्टिक्रम, स्थितिक्रम, संहारक्रम ॥ ३५६ ॥ हलो वीजानि चोक्तानि स्वराः शक्तय ईरिताः । मूर्धादिपादपर्यंतन्यासान् मंत्राणि कारयेत् ॥ ३७७॥ तहां ककारादि हकारांतकू हल संज्ञा है, ते वीज हैं । अकारादि स्वर हैं, ते शक्तिरूप हैं, तिनकू मस्तकादि पाद पर्यन्त स्थापन करें। येह स्थापन ध्यानमात्र है, लिखना नहीं है। सो मूल पाठमें स्पष्ट है ॥ ३७७ ॥ तथाहि-ओं अं नमः ललाटे, ओं ां नमः मुखवृत्त, ओं इनमः दक्षनेत्रे, ओं ई नमः वामनेत्रे, ओं नपः दक्षकर्णे, ओं ऊं नमः वामकर्णे, ओं ऋनमः दक्षनसि, ओं नमः वामनसि, ओंलनमः दक्षगंडे, ओं लुनमः वामगंडे, ओं एं नमः अध ओष्ठ, ओं ऐं नमः CARROREGARHOEACCASHLESS ११९ Jain Education a l For Private & Personal Use Only Fibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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