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________________ - बEKADASAALOR- C अथ राजगृहोपकल्पनं। अब जिनेंद्रकी उत्पत्ति आदि उत्सवको मूलकरण राजाको गृह होय है। ताकी रचना कहिये है दक्षिणदिशि जिनवेद्या राजगृहं प्रसृतचत्वराकीर्णम् । दशपंचकत्रिकधरिणीभागमनेकावासयुतं ॥ ३६० ।। कुर्यादतः पुरकृतसुषममधोभुवि च सर्वतोभद्रं । पाषाणकाष्ठशिविरै रचितं दृढबंधनाकीर्णम् ॥ ३६१॥ चलत्पताकं धृततोरणांक संगीतवादित्रगणेन रुद्धं । स्वर्गात्समानीतमिव प्रक्लृप्तं तदृ भागेडितमातृगेहं ॥ ३६२॥ स्वप्नावलीषोडशचित्रवल्ली संदर्भमांगल्यनियावभासि । अनेकनारीकलगीतरम्यमंतःपुरं संविदधीत यज्वा ॥ ३६३ ॥ वेदीत दक्षिण दिशाकी ओर विस्तार युक्त अंगणावारो दशखंण पांचखंण तीनखंणको अरु अनेक अटारी युक्त, अरु अंतःपुर जोराणीका महल तिनकी शोभा युक्त अरुनीचली पृथ्वी सर्वतोभद्र नाम स्थान संयुक्त अर पाषाण अरु काष्ठके गृह वस्त्र के गृहके दृढ़ बंधन करि रचित, अरु चलायमान ध्वजावारो अरु तोरणका चिह्न धारण करनेवारो अरु संगोत वादित्रका समूह करि व्याप्त अरु खग से ही मानू आय रच्यो गयौ अरु पाताका शयन-स्थान ऊर्दू भाग है जाके ऐसो अरुषोडश स्वप्नका चित्राम संयुत आभूषण स्नानशाला करि शोभायमान अरु अनेक सौभाग्यवती स्त्रियांका मधुर गीत करि रमणीक ऐसो अंतःपुरयजमान रचै । ऐसो घ्यार श्लोकको संबंध है ॥३६०-३६३ ॥ तदंगणे नाटकसत्प्रसज्जोपकार्यमारादिशि चोत्तरस्यां । सुदर्शनो मेरुरुदीर्णशालो वनैश्चतुर्भिः परितो विभातु ॥ ३६४ ॥ अरु ताका अंगण तांडव नृत्यका स्थान रचै अरु ताकी उत्तर दिशा दर वा समीप सुदर्शनपेरु, भद्रशालादि च्यारू बन करि वेष्टित 8 शोभायमान करै॥३६॥ BOLLECIALISALASARAMESARICORNE HAMPA R Jain Educati R onal For Private & Personal Use Only x elibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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