SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ HOROSESAMAGROCEROSECONGRES अथ मेस्वर्णनम् । अथ येरू वर्णन । जन्मकाल्याणमें मेरू ऐसा है सो कहिये हैंसप्तच्छदाशोकरसालचंपामहीरुहानेककृतोपशोभः। पांशुश्चतुर्भिः क्षणकोपरिष्टात् भागैः सुवर्णाचितविग्रहोद्धः ॥ ३६५ ॥ सप्तब्द कहिये सनूनो अशोक-प्रासोपालो आम्र अरु चंपा आदिके अनेक वृक्ष निकरि उपशोभित अरु ऊपरि उपरि च्यार वन अर्थात् | भद्रशाल नंदन सौमनस पांडुक वन चतुष्टय करि उन्नत अरु सुवर्ण रत्नमय ऐसा करावना ॥३६॥ पांडुशिलामासनसंनिविष्टां संस्थाप्य सोपानचतुष्पथाढ्यां । तत्वकार्यो जलधिः शरांकः क्षीराब्धिनामा शुचितोयपूर्णः ॥ ३६६ ॥ अरु वहाँ सोपान पैडी राजमार्ग संयुक्त पांडकशिला तीन सिंहासन संयुक्त स्थापि करि वहां ही पंचम तोरसमुद्र सुंदर-शुद्ध जल करि भृत ऐसा रचना ॥ ३६६ ॥ तत्रैव पूर्वत्र दिशासु दीक्षावनं विशालांगणकल्पशाख । दीक्षातरुस्तत्र शिलाप्रदेशः संस्कारवाटीकृतगूढमध्या॥ ३६७॥ अरु वहां ही वेदोकी पूर्वदिशाम विशाल अनेक वृक्ष युक्त दोक्षावन स्थापन करना। वहां दीक्षारक्ष मुख्य स्थापना, तिसका अधोभागम शिला स्फटिकपयो संस्कार करने के पात्र अरु बाटिका कहिये अच्छादनकी कनात करि मध्यभाग है गृह जाप ऐसो थापना ॥ ३६॥ अथाचार्यो यजमानेंद्रसामानिकानां तत्पत्नीनां च रक्षाबंधनपूर्वकसकलीकरणम् । अब इहां विधिका प्रारंभम आचार्य है सो यजमान अरु ताकी विवाहिता स्त्री अरु अन्य सभा-निवासो अरु स्त्रीजनोंके रक्षबंधन करि सकलीकरण करें। अब सकलीकरणके योग्य पात्र कहै हैं, Jain EducatioIG MOHandibrary.org For Private & Personal Use Only lonal
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy