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________________ प्रतिष्ठा १०७ Jain Educatio हाँ ही सुन्दर मुहूर्त विधिन जाननेवारो शिल्पी है सो जिनेंद्रका विंबन पद्मासन वा कायोत्सग आसन युक्त करि गढ़; अर्थात् पूर्व घटित भी मूर्ति ताका लाछनका चिह्न इहां घडै ॥ ३४३ ॥ चंद्रप्रभं वा नवमं वलक्षं सुपार्श्वपार्श्वो हरितौ विधेयौ । श्यामं तु विंशं खलु नेमिनाथं श्रीवासुपूज्यं कमलप्रभं च ॥ ३४४ ॥ गांगेयवर्णानितरान् विदध्यात् सत्प्रातिहार्यादिविभूतिभूषान् । सिद्धेश्वराणां तु विभूतिमुक्तं बिंबं मुनीनामपि नामचिन्हं ॥ ३४५ ॥ तहां चन्द्रप्रभ अष्टमतीर्थंकर तथा नवम जो पुष्पदंत तीर्थंकर तो स्वेतवर्ण तथा सुपार्श्व नाथ स्वामीका विचनैं हरित्वर्ण निर्मापन करना अरु बीसमां मुनिसुव्रतस्वामी र नेमिनाथनैं श्यामवण करना, अरु वासुपूज्य अर पद्मप्रभनेँ रक्तवर्ण करना, अरु अन्य षोड़श तीथकरोंका वर्ण सुवर्ण समान करना । सो सर्व प्रातिहार्य विभूति संयुक्त करना । अरु सिद्धांकी प्रतिमा प्रातिहार्य अर चिह्नरहित करनी अरु बाहुबलि संजयंतस्वामीकी मूर्तिभी अपना नाम ही चिह्न जाकैं ऐसी करनी ॥ ३४४—३४५ ॥ गोवारणाश्चाः कपिकोकपद्माः स्वस्त्यौषधीशौ मकरद्रुमांकौ । गंडौलुलायः किटिसेधिके च वज्रं मृगोजः कुसुमं घटश्च ॥ ३४६ ॥ कुर्मोत्पलं शंखभुजंगसिंहाः क्रमेण विवेंऽकविकल्पनानि । स्थाप्यानि तेषां सुखतो ग्रहार्थमचतने संव्यवहारसिद्धयै ॥ ३४७ ॥ अब वे चिह्न कौनसे हैं, तिनकू क्रमकरि दिखायें हैं। गो कहिये वृषभ १, वारण वा हाथी १, अश्व वा घोड़ा १, कपि वा बानर १, कोक चकवो १, पद्म लाल-कमल १, स्वस्तिक सांथियो १, औषधीश कहिये चंद्रमा १, मकर वा बडो मत्स्य १, द्रमवृक्ष १, गंड गडो १, लुलाय भैंसो 2, किटि शुकर १, सेधिका सेही १, वज्र आयुध विशेष १, मृग हरिण १, अज बकरो १, कुसुम पुष्प १, घट कलश १, कूर्म कछुवो १, उत्पल मुद्रित कमल १, शंख समुद्र-जलजंतु १, भुजंग सर्प १, सिंह नाहर १, ऐसें चौईस तीर्थकरनके चौईस चिह्न सुखसैं मूर्तिका पिछाणवा तांई तथा कार्या तर मूर्तिका ग्रहण करने अर्थि अचेतन वस्तु संव्यवहार सिद्धि निमित्त स्थापन कारना ॥ ३४६-३४७ ॥ For Private & Personal Use Only पाठ २०७ library.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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