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________________ कृत्वाऽघ मुत्तारयामि TEACHECREHSAASHIRKERSNELOCALCHING धर्मनाथके अरिष्ट आदि शपधारो गणधर हैं, अरु शांतिनाथ स्वामीके चक्रायुध आदि हैं, अरु कुथनाथके स्वयंभूदत्त आदि मणापर हैं, अक अरनाथके कुम्भ आदि मान्य गणधर हमकू पवित्र करो। अरु मल्लिनाथके विशालभूति आदि,अरु मुनिसुव्रतके पल्लिदत्त आदि, अझ नमिदानायके सप्तमृद्धिके धारी प्रभास आदि गणधर हैं, अरु नेमिनाथ पहराजके वरदत्त आदि गणधर हैं, अरु पार्श्वनाथ प्रभुके स्वयंपद है अब जाके ऐसा भू नामक अर्थात् स्वयंभू आदि, अरु वीरनाथस्वामीके गोतम आदि गणधर हैं, ते पवित्र करो॥३०२-३.७॥ एभ्योऽर्घ्यपाद्यमिह यज्ञधरावनार्थ दत्तं मया विलसतां शुचिवेदिकायां । पुष्पांजलिप्रकर तंदिलमाज्यपात्र मुत्तारयामि मुनिमान्यचरित्रभक्त्या ॥३०॥ अरु यज्ञ-पृथ्वीका रक्षण निमित्त सुन्दर वेदीम करि दीया अर्घ पाद्य, इनिके अर्थ प्रकाशपान हो । अरु मुनीश्वरोंकी भक्ति करि कि आचार्यभक्ति पढ़ि अरु चारित्रभक्ति पढ़ि पुष्पांजलिका समूह करि पुष्ट, ऐसा चारुपात्र अग्रभागमें उतारण करूं हूँ॥३०८॥ ओं ह्रीं श्रीचतुर्विंशतितीर्थंकरगणधरेभ्यस्त्रिपंचाशत्सहित चतुर्दशशतसंख्येभ्यश्चरुपात्रप कृत्वाऽघ मुत्तारयायि स्वाहा ॥ ऐसा चोईस तीर्थकरोंके गणधर जो चोदह सौ त्रेपन (१४५३) हैं, तिनके अर्थि चारुपात्र-पूर्वक अर्थ उतारण करना। टू अत्र चारित्रभक्तिपाठं कृत्वा पुष्पांजलिना वेदिका भूषयेत् । इहां चारित्रभक्तिपाठ पढ़ि पुष्पांजलि करि वेदिकानें भूषित करै। पुनश्च इंद्रमतिरग्निभतिर्वायभतिः सधर्मकः । मौर्यमौड्यौ पुत्रमित्रावकंपनसुनामधक् ॥ ३०६ ॥ बहुरि इंद्रभूति कहिये गौतम अरु वायुभूति, अग्निभूति, सुधर्म, मौर्य नामक, मौड्य, अरु पुत्र नामक, मित्र नायक, अकंपन, अंधवेल अरू प्रभास , ऐसा म्यारा गणधर श्रीपहावीरके हैं, तिन मुनिन· पूजू हूं ॥३०६ ॥ ऐसें गौतम आदि एकादश मुनि पनि अब देना। ___ओं हीं गौतमादि एकादशमुनिभ्योऽधम् । अंधवेलः प्रभासश्च रुद्रसंख्यान् मुनीन् यजे । भक्तिपाठं कृत्वा पुष्पांजलिना अपन (१४५३) हैं, तिन *555554ROGALLERMA5% मौरोलवायुभूतिः सुधर्मकः । Jain Educal For Private & Personal Use Only S helibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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