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________________ वैराग्यशतकम् ॥८२॥ अध कुर्बतो जंतोः अफलाः अम्मं कुणगणस्स । अहली अर्थ :- हे आत्मन् ! (जाजा के०) जे जे (रयणी के०) रात्री (बजाइ के०) जाय छे, (सा के०) ते ते (पडिनिपत्त के०) पाछी आवती ( न के० ) नथी. आ जग्याए दिवस ग्रहण नथी कर्यो, तोपण उपलक्षणथी ग्रहण करवो. एटले गया दिवस पण पाछा आवता नथी. केमके [ अहम्मं के० ] अधर्मने (कुणमाणस्स के ० ) करतो एवो जे तुं, ते तहारी (राईओ के०) रात्रीयो जे ते (अहला के०) अफल, एटले निष्फल ( जंति के०) जाय छे. अर्थात् अध करीने तहारा मनुष्यभवना रात्री दिवस व्यर्थ जाय छे. ॥ ४० ॥ Jain Education Inter 2010_05 भावार्थ:-आ जीवनो जेटलो वखत धर्मसाधन करवामां जाय छे, तेथलोज बखत ज्ञानी पुरुषोए सफल गण्या छे, अने बाकीनो रात्री दिवसनो जे काल एटले धर्मसाधन विनानो जे काल, ते पशुती पेठे निष्फल जाय छे, केमके, पशुने विषे आहार, निद्रा, भय अने मैथुन विगेरे जेवी रीते छे. तेवीजरीते तहारे दिषे पण छे. माटे तहारो जन्मारो पण धर्मसाधन विनानो पशु जेवो समजवो. याति रात्रयः जंति" राईओ ॥ ४० ॥ यस्य अस्ति मृत्युना सख्यं यस्य च अस्ति जेस्स ऽतिथे मच्चुणा संख्खं । जस्सं वे ऽथि For Private & Personal Use Only पलायन मृत्योः सकाशात् पलायणं ॥ भाषांतर सहित ॥८२॥ www.jainelibrary.org
SR No.600040
Book TitleVairagya Shataka
Original Sutra AuthorPurvacharya
AuthorGunvinay
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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