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________________ चैराग्यKI त्यांथी चाल्या गया, त्यारपछी सनतकुमारे उत्सम अने अमूल्य वस्त्रालंकारो धारण कर्या, अनेक उपचारधी भाषांतर जेम पोतानी काया विशेष आश्चर्य ने उपजावे तेम करीने ते राजसभामां आवी सिंहासन उपर बेठो. आज शतकम् सहित | समर्थ मंत्रियो, सुभटो, विद्वानो अने अन्य सभासदो योग्य आसने बेसी गया छे, राजेश्वर चामरछत्रयी अने खना ॥७ ॥ IN खमाथी विशेष शोभी रह्यो छे. ( वधाइ रह्यो छे.) त्या पेला देवताओ पाछा विप्ररूपे आव्या. अद्भुत रुप वर्णथी।" | आनंद पामवाने बदले जाणे खेद पाम्या छे ! एवा स्वरूपना तेओए माथं धुणाव्यं. चक्रवत्तिए पूछयं, अहो ब्राह्मणो! गइ वेला करतां आ वेला तमे जुदा रुपमा माथु धुणाव्यु, एनुं शुं कारण छे! ते मने कहो. अवधिज्ञानानुसारे विनय का के, हे महाराज ! ते रुपमा अने आ रुपमा भूमि अने आकाश जेटलो फेर पडी गयो छे. चक्रवतिए ते वात | स्पष्ट समजवा पूछयुं, त्यारे ब्राह्मणे का. अधिराज ! प्रथम तमारी कोमल काया अमृततुल्य हती, पण आ वेलाए झेररूप छे. तेथी ज्यारे अमृततुल्य अंग हतुं, त्यारे आनंद पाम्या हता. आ वेला झेरतुल्य छे, त्यारे खेद पाम्या | अमे कहीए छीए ते वातनी सिद्धता करवी होय तो, तमे हमणां तांबुल थुको, तत्काल तेना उपर मक्षिका बेसशे | अने ते परधाम प्राप्त थशे. सनत्कुमारे ए परीक्षा करी तो सत्य ठरी. पूर्व कमना पापनो जे भाग, तेमां आ कायाना | मद संबंध मेलवण थवाथी ए चक्रवर्तिनी काया फेरमय थइ गइ. विनाशी अने अशुचिमय कायानो आवो प्रपंच जोइने सनत्कुमारना अंतःकरणमां वैराग्य उत्पन्न थयो के, केवल आसंसार तजवा योग्य छे. आवीने आवी अशुची | खी. पत्र. मित्रादिना शरीरमा रहेली . ए सघलं मोहमात करवायोग्य नथी. एम योलीने, ते छ खंडनी प्रभता Jain Education in www.jainelibrary.org 2010_05 For Private & Personal Use Only
SR No.600040
Book TitleVairagya Shataka
Original Sutra AuthorPurvacharya
AuthorGunvinay
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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