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________________ वैराग्य शतकम् ।। ५९ ।।। Jain Education Inten गयुं नथी के, तमारुं कां करीए ! वली घरना खुणाने विषे खांसी खातो खातो एक तूटमूट खाटलीमां पडयो रहे छे वली जवानी अवस्थामां पुत्रादिकनें पालन पोषण करेलां, ते एवी आशाए के, तेओ वृद्धावस्थामां महारी चाकरी करशे, तोयपण ते स्त्री, पुत्र, पुत्रनी स्त्रीयो, इत्यादि ते पण ते डोसाथी न सहन थाय तेवो पराभव करे छे, अने वली मोढेथी बोले छेके, आ डोसो मरतोए नथी अने मांचो मूकतो पण नथी. वली ते डोसानी घरमा रहेला माणसोज निंदा करे छे, एटलुंज नही परंतु ते वृद्ध पोतेज; पोताना देहनी निंदा करे छे. ते उपर टीकामां लखेलुं काव्य तथा तेनो अर्थ लखीए छीए. ॥ वैतालीयवृत्तम् ॥ वसंततमस्थिशेषितं शिथिलस्नायुघृतं कलेवरम् ॥ स्वयमेव पुमान् जुगुप्सते किमु कान्ता कमनीय विग्रहा ॥ १ ॥ अर्थ- वृद्धावस्थाथी जेना बधा शरीरनी त्वचा (चामळी) मां करचोलीयो वली गइ छे, तथा शरीरमां केवल हाडकाज देखाय छे अने नाळियो पण शिथिल थइ छे, एवा बेढंगा कलेवरने जोड़, ए वृद्ध पोते पोतानी मेले ते शरीरनी निंदा करे छे; तो जेतुं शरीर सुंदर छे एवी स्त्रीयो निंदे, तेमां तो शुंज कहेवुं ? ॥ १ ॥ वली ते वृद्धावस्थाना दुःख उपर टीकामा कथा लखेली छे, तेनो अर्थ लखीए बीए. 2010_05 For Private & Personal Use Only भाषांतर सहित 11 48 11 ww.jainelibrary.org
SR No.600040
Book TitleVairagya Shataka
Original Sutra AuthorPurvacharya
AuthorGunvinay
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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