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________________ वैराग्य-dil पण आ जीवाना मातादिकपणे करीने, अनेकवार, तथा अनंतीवार पूर्व उत्पन्न थया छे. ए रीते सर्व जीवोने मांडो भाषांतर शतकम् | मांहि सर्व संबंध थइ चुक्या . इति संसारनी अनवस्था उपर कुबेरसेना गणिकानुं दृष्टांत तथा श्री भगवती सहित ॥ ४३॥ सूत्रना पाठनो अर्थ जाणवो. ॥४३॥ । अनुष्टुपवृत्तम् ।। न सा जातिः न सा योनिः न तत् स्थानं न तत् कुलम् ने सा जाई - सी जोणी । न "तं ठाणं ने "तं कुलं । न जाताः न मृताः यत्र सर्वे जीवाः अनन्तशः ने जाया नै मुआ जत्थ । सव्वे जीवा अगतसो ॥२३॥ अर्थः-(जत्थ के.) ज्यां (सव्वे के०) सर्व (जीवा के०) जीव जे ते (अणंतसो के०) अनंतीवार (न जाया के०) R- नथी उत्पन्न थया, तथा (न मुआ के०) नथी मरण पाम्या, एवी [सा के०] ते अर्थात् तेवी कोइ [जाई के०] जाति 30 जे ते (न के०) नधी. अने (सा के०) ते अर्थात् तेवी कोइ (जोणी के०) योनी जे ते (न के०) नथी, अने (तं के०)/JE D ते अर्थात् तेवू कोइ (ठाणं के०) स्थान जे ते [न के०] नथी. अने [तं के०] ते. अर्थात् तेवु कोइ (कुलं के०) कुल जे ते [न के०] नथी. एटले सर्वे जीवोने पूर्व कहेलां सर्वे स्थानको अनंतीवार थयां छे. ॥२३॥ Jain Education Interna 10.05 For Private & Personal use only c ww.jainelibrary.org
SR No.600040
Book TitleVairagya Shataka
Original Sutra AuthorPurvacharya
AuthorGunvinay
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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