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________________ भाषांतर सहित ॥११॥ P ने शोक, आ जोवे भोगव्यां छे. ॥ १॥ आ अधिकार संबंधी श्रीआचारांगजी सूत्रमा विशेष प्रकारे कर्तुं छे, | बैराग्य [D] त्यांची जोइ ले. शतकम् नरकेपु वेदनाः अनुपमाः अमातममुखबहुलयामुताः ॥११२॥ नरएसु वेअगाओ। अणोर्वमाओ असायबेहुलाओ । रेजीव त्वया प्राप्ताः अनंतकृत्वः बहुविधाः रेजीव तए पत्ता । अणंतीवुत्तो बहुविहाओ ॥ ६१ ॥ अर्थ-(रे जीव के०) हे जीव ! (तए के०) ते (नरएलु के०) रत्नप्रभादिक सात नरकने विषे (अगोवमाआ के०) oid उपमा रहित एवीयो (असायधहुलाओ के०) दुःखे करीने भरेली एवीयो, एटले अशाता वेदनीय कर्मथी उत्पन्न थएली एवीयो, अने (बहुनिहाओ के०) बहु प्रकारनी (वेअणाओ के०) वेदनाओ जे ते (अणंतखुत्तो के०) अनंतीवार AI (पत्ता के०) पामी छे. अर्थात तुं भोगवी चुक्यो छे. ॥ ६१ ॥ भावार्थ-हे आत्मन् ! ते बीजी गतियोमां तो अनेक प्रकारनां दुःख भोगव्यां, परंतु रत्नप्रभादिक नरकोनां | ril दुःख तो कही शकाय तेवां छेज नही ! केमके, तेने विषे अनंती शीत वेदना. ॥ १ ॥ तमेज अनंती उष्ण वेदना, | एटले आपणे अहिंना आकरा धखधखता खेरना अंगारा होय, तेना उपर ते उष्ण वेदनीवाला नारकीना जीवने | वाडे, तो तेने घणीज निंद्रा आवी जाय. ॥ २ ॥ तथा एवीज रीतनी अनंती क्षुधा वेदना, एटले जगतनां रहेला सर्व Jain Education Internet 1010_05 For Private & Personal use only O ww.jainelibrary.org
SR No.600040
Book TitleVairagya Shataka
Original Sutra AuthorPurvacharya
AuthorGunvinay
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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