SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ A-BARABA आवश्यकीय विचार संग्रह साधुसाध्वी २ पर समुत्थ असज्झायके मुख्य पांच भेद और उनके अवांतर भेद इस मुजब हैं॥९४ ॥ १-संजम-घातक१-धूंअर (१) (बूंद) पड़नी शुरु होवे वहांसे लगाकर जहांतक बंध न होवे वहांतक असज्झाय. २-सचित्तरज (२)-निरंतर पडे तो तीन दिनके बाद जहांतक बंध न होवे वहांतक असज्झाय. ३-भिन्नवर्षा-जिसकी धाराओंसे पाणीमें बुबुदे (परपोटे) ऊठने लगें वैसा जोरदार वर्षाद् निरंतर वर्षे तो तीन दिनके बाद, जिससे पाणीमें बुबुदे न ऊठे वैसा थोडा जोरदार वर्षाद् निरंतर वर्षे तो पांच दिनके बाद, और बिल्कुल झीणे झीणे फूसार जैसा वर्षाद् निरंतर वर्षे तो सात दिनके बाद जबतक बंध न होवे तबतक असज्झाय। 31 (१)- अर पडनी शुरु होतेही सबजगह अप्कायके जीव फैलजातेहै. वास्ते उस समय अपना सारा शरीर कंबलीसे ढांककर लकिसी ऊंडी ओरड में साधुको बैठना चाहिये, मुखभी नहीं उघाडना, प्रतिक्रमण आदि क्रियाभी धूअर मिटे बाद करनी चाहिये, इसी तरह सचित्तरज पडनी शुरु होवे वहांसे लगाकर तीन दिन बीतनेके बाद तथा तीनों प्रकारकी भिन्न वर्षा में अनुक्रमसे तीन, पांच और सात | |दिन के बाद जबतक म मिटे तबतक कुच्छभी क्रिया नहीं करनी । (२)-पवनके जोरसे उडीहुई जंगलकी झीणी झीणी धूल जो थोडीसी लालरंगकी देनने आवे वह सचित्तरज कहातीहै। SEXXXXXXXXXX N ॥९४॥ For Private & Personal Use Only ___JainEducation inteTRI 2010_05 Jinww.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy