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________________ ॥ ९३ ॥ साधुसाध्वी भुरका के दूसरा पट्टा बांधे, यदि दूसराभी भींजजाय तो उसी मुजब तीसरा पट्टा बांधे, बाद पढना कल्पता है, यदि तीसरा पट्टाभी भींजजाय तो दूसरे साधु साध्वी सा हाथके बाहर अन्य उपासरे आदिमें जाकर वांचें - पढें । २- जिस साध्वीको अटकाव आयाहो उनको तो तीन दिनतक कुच्छभी वांचना-पढना नहीं कल्पता, परंतु यदि एक पट्टा भींजजाय तो उस पट्टेके उपर राख भुरकाके दूसरा पट्टा बांधे, वहभी यदि भींजजाय तो | उसीतरह राख भुरकाके तीसरा पट्टा बांधे, इसी तरह करते हुए उपराउपरी सात पट्टे बांधे वहां तकतो अन्य साध्वियोंको उसी उपासरे में वांचना - पढना कल्पताहै, यदि सातमा पट्टाभी रुधिरसे भींजजाय तो सो हाथके बाहर अन्य उपासरे में जाकर पढ़ें, अटकावके तीन दिन बीत जाने के बादभी यदि रुधिर देखनेमें आने परभी | पट्टा बांधकर उसको खुदकोभी वांचना- पढना कल्पताहै, यदि पट्टा रुधिरसे भींजजाय तो पहले लिखे मुजब दूसरा- तीसरा पट्टा बांधते हुए उपराउपरी ७ सात पट्टे बांधकेभी पढना कल्पताहै, परन्तु सातमा पट्टा भींजे बाद जिसको अटकाव आयाथा उस साध्वीको पढना नहीं कल्पता और अन्य साध्वियों कोभी सो हाथ के बाहर दूसरे उपासरेमें जाकर पढना चाहिये । Jain Education Interas 2010_05 For Private & Personal Use Only आवश्य कीय विचार संग्रह: ॥ ९३ ॥ ww.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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