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साधुसाध्वी ॥९॥
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अर्थ-आहार गुप्त हो, यानि सदाके प्रमाणसे अधिक अथवा चीकणा-मीठा आदि पुष्टिकारक आहार विना / आवश्यकारण न करे १, अविभूषित आत्मा हो, अर्थात् अपने शरीरकी स्नान-विलेपन आदिसे तथा कपडे आदि कीय विचार उपकरणोंकी धोने धानेसे विभूषा न करे २, स्त्रिओंको तथा उनके हाथ-पग-स्तन आदि अवयवोंको एकाग्र है।
संग्रहा दृष्टिसे न देखे ३, स्त्रिओंसे परिचय न करे, यानि स्त्रीके वापरे हुए आसन-पाट वगेरह दो घडिके पहले न वापरे ३, है। जिसमें स्त्रिओंका रहेवास हो अथवा स्त्रिओंकी तस्वीरें लगी हों तथा पशु अथवा नपुंसकोंका रहेवास हो उस / मकानमें साधुको न रहना ४, तत्त्वके जाणकार मुनि क्षुद्रकथा (स्त्री संबंधी कथा अथवा केवल स्त्रीओंकी, साध्वी केवल पुरुषोंकी पर्षदा-सभामें धर्मकथा-व्याख्यानादि)न करे ५, इन पांच भावनाओंसे भावित अंतः ।। करणवाला धर्मसेवनमें तत्पर मुनि अपने ब्रह्मचर्यको खूब पुष्ट करताहै । पांचमें महाव्रतकी पांच भावना
जे सद्दरूवरसगंधमागए, फासे य संपप्प मणुन्नपावए । ___ गेहिं पओसं न करेज पंडिए, से होइ दंते विरए अकिंचणे ॥५॥ अर्थ-जो पंडित (तत्त्वका जाण) साधु इष्ट अथवा अनिष्ट यानि भले अथवा बुरे शब्द १, रूप २,
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II 2010_05
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