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________________ SEARS साधुसाध्वी कायगुप्ति आदरुं ३-२२" कहते हुए तीन अक्खोडे करके " मनोदंड-वचनदंड-कायदंड परिहरु ३-२५" आवश्य॥७६॥ है कहते हुए तीन पक्खोडे करे । इसतरह तीन वार तीन तीन (३-३) करनेपर नव तो अख्खोडे और नव | कीय विचार पक्खोडे छ पुरिम तथा एक देखनेरूप दृष्टिपडिलेहण. इन सबको मिलाने पर २५ बोल सहित २५ पडिले- संग्रहः हण मुहपत्तिकी (१) होतीहैं । बाद पहले लिखे मुजबही वधूटक करके जीमणे हाथमें रखी हुई मुहपत्तिसे । (२) हास्य-रति-अरति परिहरु ३ " बोलते हुए डाबी भुजा (खंधेसे कुणीतक) के बीचमें-जीमणी बाजु तथा ६ डाबी बाजु प्रमार्जन करे, बाद " भय-शोक-दुगंछा परिहरु ३-६" कहते हुए उसी तरह डाबे हाथमें रखी हुइ मुहपत्तिसे जीमणी भुजाके बीचमें-डाबी बाजु और जीमणी बाजु प्रमार्जन करे । बाद मुहपत्तिके दोनों । छेडे दोनों हाथोंसे पकडकर “ कृष्णलेश्या-नीललेश्या-कापोतलेश्या परिहरु ३-९" कहते हुए ललाटके तथा “ऋद्धिगारव-रसगारव-सातागारख परिहरु ३-१२” बोलते हुए मुखके और " मायाशल्य-नियाणा (१)-कपडोंकीभो येही पच्चीस (२५) पडिलेहण है, यानि मुहपत्तिकी तरहही पच्चीस ( २५ ) बोल बोलते हुए कपडेभी 2 सापडिलेहण चाहिये। (२)-प्रतिफणकी पुस्तकों में 'कृष्ण लेश्या' आदि बोल यद्यपि पहले लिखेहैं, परंतु साधुविधि प्रकाश-प्रवचनसारोद्धारकी टीका'-मुहपत्ति पडिलेहणकी सज्झाय तथा स्तवनादिमें 'हास्य' आदि बोल पहले होनेसे हमनेभी इसी तरह बिखेहैं। NEX-13-10GREGRECERRO R RESENSECX __JainEducation intellil 2010_05 For Private & Personal use only vww.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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