SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधुसाध्वी ॥७५॥ 84 ऊंची नीची करके खंखेरे ३-४, फिर दूसरी वर पलटके "कामराग-स्नेहराग-दृष्टिराग परिहरु ३-७," ऐसा बोलता आवश्यहुआ उस पसवाडेको देखकर तीन पुरिम करे ३-७, बाद मुहपत्ति दुप्पट करके दो अथवा तीन वधूटक की विचार करके (सल पाडके ) जीमणे हाथकी अंगुलियोंमें पकडकर “सुदेव-सुगुरु-सुधर्म आदरं ३-१०” बोलते । संग्रहः हुए दोनों जंघाओंके बीचमें लंबा किये हुए डावे हाथकी हथेली उपर तीन अक्खोडे (१) करके ३-१०४ " कुदेव-कुगुरु-कुधर्म परिहरु ३-१३ " कहते हुए तीन पक्खोडे (२) करे ३-१३, फिर " ज्ञान-दर्शन-3 चारित्र आदरं ३-१६” कहते हुए तीन अक्खोडे (३) करके " ज्ञानविराधना-दर्शनविराधना-चारित्रविरा-3 धना परिहाँ ३-१९ ” बोलते हुए तीन पक्खोडे करे, इसी तरह तीसरी वारभी “ मनोगुप्ति-वचनगुप्ति (१)-हथेलीके मुहपत्तिका स्पर्श न होवे उस तरह ऊंची नीची खंडेरते हुए अंगुलियोंकी तरफसे पंजेकी तरफ मुहपत्ति लेजाना उस को 'अक्खोडे' कहतेहैं। (२)-हथेलीके मुहपत्तिका स्पर्श होवे वैसे पूंजते हुए पंजेकी तरफसे अंगुलियोंकी तरफ मुहपत्ति लेजाना, उसको पक्खोडे' कहते हैं। (३)-डाबे हाथकी अंगुलियों में जीमणे हाथकी तरफ पकडी हुई मुहपत्तिसे दोनों जंघाओंके बीच में लंबे किये हुए जीमणे हाथकी हथेली में "मानविराधना" आदि ९ बोल बोलते हुए ६ पक्खोडे और तीन अक्खोडे करने, ऐसा पांच पडिकमणेकी पुस्तकमें| तथा रत्नसागर आदिमें लिखाहै, परंतु प्रवचनसारोद्धारकी टीका तथा महोपाध्याय-श्रीमत्क्षमाकल्याणजी गणि रचित 'साधुविधिप्रकाश ॥ ७५॥ आदिमें नव अक्खोडे और नव पक्खोडे एकली डाबी हथेली परही करनेका लिखाहै इस वास्ते हमनेभी मुख्यपणेसे वह ही बात लिखीहै। - पून Jain Education Intel 2010_05 For Private & Personal use only ( ww.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy