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साधुसाध्वी रजा बिना यदि कोई अकेला अथवा अन्य आदमी साधुको बहरावे तो वह 'अनिसृष्ट' दोष १५, अपने घर में आवश्य
निमित्त रसोई करना शुरु कर देनेके बाद गाममें साधुओंके आनेकी खबर मिलने पर अपने वास्ते रंधाते कीय विचार हुए अन्नमें साधुके निमित्तसे दूसरा अन्न मिला कर अधिक रसोई करे वह ' अध्यवपूरक ' दोष १६, संग्रह ये उद्गमके १६ दोष हैं, जो कि आहार बनाते हुए गृहस्थोंसे ही लगते हैं, इन से बचनेके वास्ते गौचरी | जाने वाले साधु-साध्विओंको चाहिये कि-वे आहार लेते समय पूरी सावधानी रखें, गृहस्थोंके इंगित, आकार तथा चेष्टा वगैरहसे जिस आहारमें किसीभी दोषकी संभावना हो वह आहार न लेवें ॥
अब केवल साधुसे लगने वाले उत्पादनाके १६ दोष बताते हैं:| "धाई दूइ निमित्ते, आजीव वणीवगे तिगिच्छा य । कोहे माणे माया, लोभे य हवंति दस एए ॥४॥"
"पुग्विं पच्छा संथव, विज्जा मंते य चूण्ण जोगे य। उप्पायणाइ दोसा, सोलसमे मूलकम्मे य ॥५॥" ___ अर्थः- बालकको धवाने (धवराने ) वाली, स्नानादि कराने वाली, अलंकार (दागिना) पहराने है।
1 ॥४॥ वाली, रमाने वाली और उपाडने (तेडने) वाली ये पांच प्रकार की धात्री (धामाता) कहातीहैं, इनमें से
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