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________________ साधुसाध्वी मकान वाले सिजातर होते हैं। एक समुदाय के ही साधु या साध्वी अधिकहों और मकान उतरनेका छोटाहो जिस ई आवश्य से दो चार मकानों में जुदे जुदे ठहरे हों तो गुरु या गुरुणीने जिसमें निद्रा ली हो तथा राइ पडिक्कमणा किया है कीय विचार हो उसी मकानका मालिक सिजातर होता है अन्य नहीं होता । यदि कोइ भूलसे सिजातरके घरका आहार है। संग्रहः पाणी आदि लाकर खावे पीवे अथवा वापरे तो उसको एक (१) उपवास की आलोयणा आवे । ५-आहार-दोष-विचार| गृहस्थ के घर गोचरी लेते हुए ४२ बेतालीस दोष और उपासरे में आकर आहार करते हुए मंडली के पांच दोष सब मिलकर ४७ दोष साधु साध्वियों को त्यागने चाहिये, वे इस मुजब हैं8 “सोलस उग्गम दोसा, सोलस उप्पायणाए दोसा य। दस एसणाए दोसा, गासेसण मिलिय सगयाला १" | __ अर्थ- उद्गमनके १६ दोष जो कि आहार (रसोइ) बनाते हुए केवल गृहस्थोंसेही लगते हैं, उत्पासदन के १६ दोष. जो गौचरी जाते हुए साधु-साध्वियोंसे ही लगते हैं, ग्रहणषैणा नाम ग्रहण करते हैं। I (१) “सिज्जातरपिंडे मां० मयंतरे पु०" विधिप्रपा। “शय्यातर्रायपिंडस्य बादने धर्म (उप०) मादिशेत्” भाचार दिनकर पत्र २५२ । ॥६ ॥ JainEducation Intern al 2010_05 For Private & Personal use only Hlwww.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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