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________________ साधुसाध्वी ॥ ५९ ॥ Jain Education Inter कर तो सकता हूं परन्तु आज भाव नहीं है" । और जो करने की इच्छा हो उसके वास्ते यह विचारना कि- "अमुक पच्चक्खाण करने की मेरी इच्छा है" । ४- सिजातर - विचार - I साधु या साध्वी जिस मकान में उतरे उस मकानका स्वामी सिज्जातर कहाता है, घर घणीने यदि किसी दूसरेको भाडे देदिया हो अथवा किसी कारण से दूसरेके नामपर चढा दिया हो तो भाडे वालेका | अथवा जिसके नामपर चढाया हो उसका घर सिज्जातर करना चाहिये । रातमें संथारा पोरिसी भणाकर निद्रा (उँघ) लेने के बाद तथा राइ पडिकमणा करनेके बाद सिज्जातर होता है सो उस मकान को छोड़कर जिस वक्त विहार करे ? दूसरे दिन के उस वक्त तक चारों प्रकारका आहार ओघा - चद्दरादिक कपडे| पात्रे - कंबल आदि चीजें सिज्जातर के घरसे न लेनी, परन्तु राख कुंडी घास-पाट पाटले अथवा लेप करने की कोइ चीज चाहिये तो सिज्जातर के घर से भी ले सकते हैं । यदि एक मकानमें निद्रा लेवे और राइ पडिकमणा किसी दूसरे मकान में जाकर करे ? तो दोनों 2010_05 For Private & Personal Use Only आवश्य कीय विचार संग्रह: | ।। ५९ ।। www.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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