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________________ SAEXT -१-+ साधुसाध्वी ___ अर्थ-इस मंडली रचनामें आगे आचार्य बैठे, उनके पीछे दो जणे, दो के पीछे तीन जणे, तीनके विधि॥५२॥ ॥ पीछे दो जणे और दोके पीछे एक जणा बैठे, यह मंडली रचना नव साधुओं के समुदायकी है। सूत्रकी || संग्रह वाचना लेते समय १, सूत्रके अर्थकी वाचना लेते समय२, भोजन करते वखत ३, कालग्रहण लेने में ४, ६ आवश्यक (पडिक्कमणा) करते समय ५, सज्झाय पट्ठवते या करते वखत ६ , तथा संथारा पोरिसी भणानेके , समय ७, इस रीतिसे मंडली- रचना करनी चाहिये । ००४०० सूचना:- पर्यंत आराधना विधि, महापारिद्वावणिया विधि, अंतिम देववंदन विधि और श्रावक कर्तव्य इनका संग्रह "साधु साध्वी आराधना विधि तथा अंतक्रिया विधि " नामक प्रकरण अलग छपा है, उसको श्रीमती पुण्यश्रीजी स्मारक ग्रन्थमाला ठि:-इमली वाली जैन धर्मशाला-कुन्दीगर भैरो जी की गली मु:जयपुर से मंगवा लेना. - KRANEXXXXXXX +- XXE ॥५२ ॥ इति साधु-साध्वी योग्य आवश्यकीय विधि संग्रहः समाप्तः ॥ Leacanamaramanexaaaaaaaaaaaaaaaaal Jain Education Intel 2010-05 For Private & Personal use only Tiwww.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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