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________________ साधुसाध्वी ॥३१॥ गोयमाइणं महामुणिणं " इस तरह कहकर ३ नवकार तथा ३ करेमि भंते ! कहे, बाद "अणुजाणह जिहिज्जा, अणुजाणह परमगुरु !” इत्यादि पोरिसीकी गाथा कहकर ३ नवकार गिणे॥ १२-पाक्षिकादि-प्रतिक्रमण-विधिःपक्खी, चौमासी और संवच्छरी तीनोंमें चैत्यवंदनके समय जय तिहुअणकी तीसों [३०] गाथा कहनी, और थुइयोंकी जगह "वेंद्रेकि” ये थुइयां कहनी, बाकी पगामसिज्जाए कहने तक सब देवसीय पमिकमणेका विधि करना, पगामसिजाए कह चुके बाद खमा०देकर 'देवसियं आलोइयं पडिकंतं इच्छा० संदि० भग० ! (२) पक्खी+ मुहपत्ति पडिलहुं ?, इच्छं' कहकर मुहपत्ति पडिलेहकर दो वांदणे देवे, बाद वृद्ध साधु कहे 'पुन्यवंतो || बवेसीने स्थानके पक्खी+ भणजो, छींक जयणा करजो, मधुर स्वरे पडिकमजो दूसरे सब जणे कहें 'तहत्ति' बाद दो वांदणे (२) देकर खड़े होकर इच्छा ० संदि० भग० ! संबुद्धा खामणणं अब्भुटिओमि अभितर पक्खिय (१) जहां जहां+ऐसी चीकडिकी निशानी है वहां वहां सब जगह चौमासी हो? तो चौमासीका और संवच्छरी हो? तो संवच्छरी का नाम लेना। (२) दो बांदणे देते समय पक्खीमें - " पक्खो वइकतो-पक्खियं वहक्कम -पक्खियाए आसायणाए"। चौमासीमें - "चोमासी *****#***#***#*#X+X#BEXX ॥३१॥ X X Jain Education InteresIL 2010_05 For Private & Personal use only iww.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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