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साधुसाध्वी काउसग्ग करे, पारकर प्रगट लोगस्स कहे फिर खमा ० देकर 'श्रीचतुरशीति गच्छ शृंगारहार जंगम जुगप्रधान ॥ ३० ॥|| भट्टारक दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी चारित्र चूडामणि आराधना निमित्तं करोमि काउसग्गं' अन्नत्य कहकर
? लोगस्सका काउसग्ग करे, पारकर, प्रगट लोगस्स कहे।फिर खमा ० देकर 'अविधि आशातना हुई होय ते सवि . हुमने वचने कायाए करी मिच्छामि दुक्कडं' कहे॥
११-राइय-संथारा-पोरिसी-विधिःa एक साधु खमा० देकर कहे- 'इच्छा० संदि० भग० ! बहुपडिपुन्ना पोरिसी' गुरु कहे 'तहत्ति' । वाद सब जणे *
खमा ० देके इरियावही पमिकमे, खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग०! राइय संथारा मुहपत्ति पडिलहुं ? , इच्छं। कहकर मुहपत्ति पडिलेहें, बाद खमा० देकर 'इच्छा ० संदि० भग० ! राइय संथारा संदिसाउं?' 'इच्छं इच्छामि खमा०'इच्छा० संदि० भग! राइय संथारा ठाउं ? इच्छं इच्छामि खमा० 'इच्छा०संदि० भग०! चैत्यवंदन करूं? | इच्छं' कहकर “ चउक्कसाय" तथा- "अहंतो भगवंत इंद्रमहिता" यह श्लोक बोलकर नमुत्थुणं ० जावंति चेइया-15॥३०॥ इ० जावंत केवि साहू० नमोऽहत् उवसग्गहरं० तथा जय वीयराय ! कहे, बाद "निसिही३ नमो खमासमणाणं
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