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साधुसाध्वी | इच्छा० संदि० भग० ! (१) अंगपडिलेहण सदिसाउं?' इच्छं इच्छामि खमा० 'इच्छा० संदि० भग० ! अंग-2 विधि
पडिलेहण करूं?, इच्छं' कह कर मुहपत्ति पडिलेहे, बाद कंदोरा हो? तो खोल कर चोवडा करके १० बोलसे पडिलेह | कर कानमें रखे. और चोलपट्टा पडिलेह कर पहर कर कंदोरा बांध लेवे। बाद गुरु अथवा अन्य कोईभी साधु । खमा० देकर 'इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी पडिलेहणा पडिलेहावोजी' कह कर गोडों ऊपर बैठ कर कंबली पडिलेहे और पूंज कर जमीन ऊपर रखे, उस पर आगे लिखे मुजब स्थापनाचार्यजीकी पडिलेहण करे
स्थापनाचार्यजी खोल कर उनके ऊपर ढांकनेकी मुहपत्ति पडिलेह कर जीमणे हाथमें रखे और डावे । हाथमें स्थापनाचार्यजी लेकर १३ बोलसे (२) पडिलेह कर कंबल पर रखे, बाद समेटी हुई नीचली दो । मुहपत्तियां तथा बिछाई हुई सूतकी और उनकी मुहपत्तियां (३) पडिलेहे, बाद नीचे ऊनी और ऊपर सूतु मुहपत्ति ।
बिछावे, उसमें समेटी हुई दो मुहपत्तियां रख कर ऊपर स्थापनाजी रखे, उनके ऊपर समेटी हुई तीसरी मुहपत्ति IS (१) अंग शब्दका अर्थ-शरीर पर रहे हुए चोलपट्टा कंदोरा समझना, पांगरणी आदि नहीं । (२) “शुद्ध स्वरूप धारक १ ज्ञान ||
गुप्ति ११ वचन गुप्ति १२ काय गुप्ति १३ आदरे " ये १३ बोल स्थापनाचार्य पडिलेहनेके हैं। (३) २५-२५-बोल से।
XARAK XAX
२ दर्शन ३ चारित्र ४ सहित, सद्दहणा शुद्धि ५प्ररूपणा शुद्धि ६ दर्शन शुद्धि ७ सहित पांच आचार पाले ८ पलावे ९ अनुमोदे १० मनो
। ॥९॥
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|2010_05
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