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________________ साधुसाध्वी ॥ ८ ॥ Jain Education Interns २ - प्रातः (१) पडिलेहण विधि: स्थापनाचार्यजी खोल कर इरियावही पडिकमे, खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! पडिलेहण संदि साउं ? इच्छं' इच्छामि खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! पडिलेहण करूं? इच्छं' कहकर मुहपत्ति पडिलेहे, बाद मुखपर मुहपत्ति अथवा कपडेका पल्ला लागा कर ओघा खोले, पहले पाठा, पीछ दशियां २५-२५ बोल से पडिलेह कर १० बोल बोलते हुए दशियोंसे दंडीको पडिलेहे, बाद सूतकी निषद्या (निशीथिया ) तथा उनकी निषद्या ( ओघारिया ) २५-२५ बोलसे पडिलेहे उसके बाद डोरा चोवडा करके १० बोल बोलते हुए ओघेकी दशियोंसे पडिलेह कर कानमें रखे और खडे गोडोंसे बैठ कर ओघा बांद लेवे | बाद खमा० देकर [१] सूर्य उदय होने के पहले झोली-पडले आदि गौचरीके उपकरणोंको छोड कर ओढने बिछाने के कपडे तथा दंडा आदि सब उपकरणोंकी पाडलेहण कर चुके. और काजा लेते समय सूर्य उदय होजाय. वैसे अवसर में पडिलेहण शुरू करना चाहिये, ऐसा 'प्रवचन सारोद्धार' टीका ( पत्र १६६ ) मे लिखा है। * हरएक उपकरण पडिलेहने में जहां २५ बोल लिखे होवे वहां "सूत्र अर्थ" से लगाके "काय दंड परिहरूँ" तक और जहां १० बोल लिखे होवे वहां पर " सूत्र अर्थ" से लेकर "सुधर्म आदरूं" तक, तथा जहां १३ बोल लिखे हो वहां पर “सूत्र अर्थ " से लेकर "कुधर्म परिहरूँ" तक, मुहपत्ति पडिलेहण के २५ बोलों में से सब जगह यथोचित समझलेना । 2010_05 For Private & Personal Use Only विधि संग्रह: ॥ ८ ॥ www.jainelibrary.org.
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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