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________________ साधुसाध्वी आवश्य१७-किसीके रोगादि कारणसे तीन दिन बाद भी रक्त (खून ) बहता दीखे तो उसका विशेष | कीय विचार दोष नहीं, शुद्धविवेकसे पवित्र होके पांच दिन बाद स्थापना व पुस्तकादिको अडे, साधुको वहोरावे, जिन ग्रह दर्शन तथा अग्र पूजा करे, परन्तु अंग पूजा न करे, जिनके ऋतुधर्मका टाइम नियमित न हो, याने आगे पीछे ( मोडा-वेगा) बिना टाइमसे ऋतुधर्म आता हो उनको तो तीर्थादि हर किसी जगह रही हुई चमत्कारी ) || मूलनायक जिनप्रतिमाकी अंगपूजा नहीं करनी, जिससे प्रभु आशातनाको नहीं सहने वाले अधिष्ठायक / देवका तथा उस देव संबंधी चमस्कारका लोप न हो और जिन प्रतिमाकी महिमा नष्ट होने के कारण शासनो-32 हान्नतिको नाशकरनेके दोषकी भागीदार वह स्त्री न होने पावे । । १८-ऋतुवंती स्त्रीको ऋतुदिनमें तपस्या करनी कल्पतीहै और उनकी करी तपस्या सफलहै परन्तु Pऋतुदिनमें जिनपूजा प्रतिक्रमणादि कोई भी क्रिया करनी नहीं कल्पती । ॥११७॥ Jain Education Inter ICA 2010_05 For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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