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साधुसाध्वी ॥११६॥
जो कितनेक शास्त्रोत्तीर्ण वादी चैत्यवासी यतियोंकी परंपरा वाले सकलागमरहस्यवेदित्वाभिमानीलोग है, आवश्यजन्म मरणके सूतकको लौकिक कहके नहीं मानते हैं और ऐसे सूतक वालेको भी जिनपूजा आदि करनेका उपदेश है कीय विचार देते हैं यह बिल्कुल शास्त्र विरुद्ध है, यदि लौकिक होने के कारण जन्म मरणके सूतकवालेका घर जिनपूजा आदि . संग्रह के लिए त्याज्य न माना जाय तो ड्रम चमारादिकके घर भी त्याज्य नहीं मानने पड़ेंगे, क्योंकि लौकिकपणा दोनोंमें समान है, फरक इतना ही है कि-जन्मादिकके सूतक वाला घर इत्वरिक (अमुक टाइमतक), त्याज्य है और ड्रम चमारादिकके घर यावत्कथिक ( सर्वदा ) त्याज्य हैं, देखो आगे लिखे शास्त्र पाठ
“लोइओ दुविहो-इत्तरिओ आवकहिओ अ, इत्तरिओ सूअगादिसु दसाइदिवसपरिवजणं, आवकहिओ जहा-नट्टवरुडछिपगचम्मारडुंबा य, लोउ(त्तरइ)त्तरिओ सेज्जादाणअभिगमसड्ढादि, आवकहिओ रायपिंडो इति" निशीथचूर्णि "प्रतिष्टकुलं द्विविधं-इत्वरं १ यावत्काथिकं च २, इत्वरं सूतकयुक्तं, यावत्कथिकमभोज्यं, एतन्न विशेत्, शाशनलघुत्वप्रसंगात् ” दशवकालिक टीका हरिभद्रसूरिजी कृत।
१६--ऋतुवंती स्त्री चार दिनतक भांडादिकको अडे नहीं तथा जिनदर्शन मुनिवंदन प्रतिक्रमणादि ॥११६॥ करे नहीं, पांच दिन देवपूजा नहीं करे।
-KHAN-KARMAYA-ARAXNX.
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