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साधुसाध्वी बंध न होवे तबतक असज्झाय (१)।
आवश्य४-व्युद्ग्रह
कीय विचार
संग्रहः १-राजाओंकी-दंडाधिकारी (कोटवाल आदि) ओं की-सेनापतिओंकी लडाई होती हो । अथवा उपासरेके आसपास सो सो हाथमें स्त्री-पुरुष या मल्ल लोक लडते हों, पर चक्रका भय हो यानि अन्य || राजाने अपनी फोजसे गाम या शहरको घेर लिया हो, चोर धाडेती आदिका अत्यन्त भय हो, म्लेच्छ लोकोंकार है उपद्रव (दंगा-फिसाद) हो तो ये सब जबतक बंध न होवें तबतक असज्झाय । बंध होनेके बाद भी है। एक अहोरात्रि (२) असज्झाय ।
(१)-इसीतरह किसी देश-गाम-नगर आदिमें अन्य भी किसी देवी देवताओं के पूजा निमित्त जो महोत्सव होते हो जिसमें जीव हिंसा अधिक होती हो तो उस देश-गाम आदिमें जितने दिन तक वह महोत्सव रहें उतने दिन तक असज्झाय मानना चाहिये ।
(२) जहां जहां अहोरात्रि लिखा है वहां वहां सर्वत्र यह समझना कि-जिस टाइम में असज्झाय हुआ हो दूसरे दिन उस टाइम तक सज्झाय छोडने की जरूरत नहीं, किंतु घडी रात रहते भी यदि असज्झाय हुआ हो तो भी सवेरे सूर्य उदय हुए बाद सज्झाय करना X॥१० ॥ कल्पताहै। जहां जहां पहारों की गिणती लिखी है वहां वहां उतने पूरे होने चाहिये ।
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