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________________ - आवश्य संग्रह साधुसाध्वी रात्रि तक ही असल्झाय होवे, सूर्य उदयके बाद नहीं । ॥१८॥ सूर्य ग्रहण-सूर्य अस्त होनेके समय ग्रहण लगे और ग्रहण सहित सूर्य अस्त होजाय तो उसकीय विचार रातके ४ पहोर तथा दूसरे दिन और रातके ८ पहोर ये दोनों मिलकर १२ पहोरका जघन्य असल्झाय। है ग्रहण युक्त सूर्य उदय होकर किसी भावी उत्पातके कारण आखा दिन ग्रहण सहित रहे और संध्याको ग्रहण सहित ही अस्त होजाय, अथवा 'आज अमावसको सूर्य ग्रहण होनेवाला है ' इतना तो मालूम हो परन्तु 'अमुक टाइममें होवेगा' यह मालूम न होवे और आकाशमें बादलोंके कारण सूर्यभी देखने में न आवे जिससे यह मालूम पड सके कि ग्रहण है या नहीं, इससे दिन भर सज्झाय न करे, संध्या समय बादले दूर होजानेसे अस्त होता हुआ सूर्य ग्रहण सहित देखने में आवे तो अमावसके * दिन तथा रातके ८ पहोर और दूसरे दिन तथा रातके ८ पहोर ये दोनों मिलकर १६ पहोरका उत्कृष्ट है असज्झाय । कदाचित् कभी दुपहरको या तीसरे पहोरको ग्रहणकी शुरुआत होकर ग्रहण सहित ही यदि ॥९८ ॥ सूर्य अस्त होजाय तो जिस समय ग्रहण शुरु होवे वहांसे लगाकर दूसरे दिन तथा रातकी समाप्ति तक BREXXX BUXUR XXX www.jainelibrary.org Jain Education Inte l For Private & Personal use only 2010_05
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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