SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदेशप्रा. संत्र.१५ ॥ ३॥ समोसरणवत्तवया जाणियवा, जाव पुबद्दारेण समागया पहु सीहासणे उवविध, बारस परिसा भागया। कलाकेलिराया अमेऽवि एयरवासिणो लोगा वंदणत्यं समागया । ता तीए महश्मीलयाए परिसाए पुर धम्मो कहिले, तं जहा| "मन्नह जिणाण आणं मिलत्तं परिहरह धरह सम्मत्तं । उविह श्रावस्सयम्मि य उजुत्ता होइ पइदिवसं ॥१॥ पवेसु पोसहवयं दाणं सीलं तवो य जावो य । सनाय नमुक्कारो परोवयारो य जयणा य ॥२॥ जिणपूत्रा जिणथुणणं गुरुथुई साहम्मियाण वन्नई । सबविरश्मणोरह एमाई सकुकिच्चाई ॥३॥ | जो जो नवजीवा! मोहायकम्मवसेण संसारिजीवो चउगई संसारघोरकंतारे जम्ममरणाश्क बहुले वारंवारं परिजम । सो अकामनिङरापुलोदय अववहाररासी ववहाररासिम्मि आगढ । अहापवित्तिकरणा जीव सत्तकम्मपयमीणं संपत्तेयं संपत्तेयं एगा कोमाकोमीले कुणइ, पलिअस्स य असंखिअनागूणा एगा कोमाकोमी करइ । गिरिनिवमियजवलनाएण लहुविय करे, सुहणं जावं बंध । तर्ज अहापवित्तिकरणेणं जीवा वायरपुढविसु पऊत्तनावे उपकइ । त पला कोई नवजीवो सन्निपंचिंदिन मणुस्सेसु परित्तसंसारी बारियखित्ते सुकुले नपक्राइ। त माणुस्सखित्तकुलगुरु चाइ धम्मसामग्गीं| पप्प सुझप्पसहावं एवं चिंतेश्, अहवा गुरूवदेसा अप्पधम्मजावणं नावे, तं जहा-एसो मम अप्पा असंखिऊपएसि दवच्याए एगो पञ्जवच्यिाए अणेगपरिणामळ नाणदसणसुगुणपञ्जावम अयंता अस्थिधम्मा अर्पता नस्थिधम्मा अणेगसामन्नविसेसधम्मा समत्यपुग्गलनावरहिउँ तिहुवि कालेण वत्थु स्कूल ॥ ३॥ Jain Education International 2010_18 For Private Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600036
Book TitleUpdesh Prasad Part_3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylaxmisuriji
PublisherSurendrasurishwarji Jain Tattvagyanshala Ahmedabad
Publication Year
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy