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________________ आवश्यक निर्युक्तिदीपिका | ॥१७६॥ Jain Education Inter 1 उवसंपन्नो जुत्तो, रक्खामि महव्वए पंच ॥ २३ ॥ किव्हा नीला काऊ, तिन्नि य लेसाओ अप्पसत्थाओ । परिवज्जंतो गुत्तो, रक्खामि महत्वए पंच ॥ २४ ॥ तेऊ पम्हा सुक्का, तिन्नि य लेसाओ सुप्पसत्थाओ । उवसंपन्नो जुत्तो, रक्खामि महव्वए पंच ॥ २५ ॥ मणसा माणसच्चविऊ, वायासच्चेण करसच्चेण । तिविहेण वि सच्चविऊ, रक्खामि महत्वए पंच ॥ २६ ॥ चत्तारि य दुहसिज्जा, चउरो सन्ना तहा कसाया य । परिवज्जंतो गुत्तो, रक्खामि महवए पंच ॥ २७ ॥ चत्तारि य सुहसिज्जा, विहं संवरं समाहिं च । उवसंपन्नो जुत्तो, रक्खामि महबए पंच ॥ २८ ॥ पंचेव य कामगुणे, पंचे अहवे महादोसे । परिवज्जंतो गुत्तो, रक्खामि महवए पंच ॥ २९ ॥ पंचिंदियसंवरणं, तहेव पंचविहमेव सज्झायं । उवसंपन्नो गुत्तो, रक्खामि महवए पंच ॥ ३० ॥ छज्जीवनिकायवहं, छप्पिय भासाउ अप्पसत्थाउ । परिवज्जंतो गुत्तो, रक्खामि महवए पंच ॥ ३१ ॥ छवि मन्भितरयं, बज्झं पिय छविहं तवोकम्मं । उवसंपन्नो जुत्तो, रक्खामि महवए पंच ||३२|| सत्त य भयठाणाई, सत्तविहं चैव नाणविभंगं । परिवज्जंतो गुत्तो, रक्खामि महवए पंच ॥ ३३ ॥ पिंडेसण पाणेसण, उग्गह For Private & Personal Use Only कायोत्सर्गाध्ययने पाक्षिक सूत्रम् ॥ ॥१७६॥ www.jainelibrary.org
SR No.600032
Book TitleAvashyakaniryuktidipika Part_2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManekyashekharsuri
PublisherVijaydansuri Jain Granthmala Surat
Publication Year1945
Total Pages410
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size20 MB
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