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________________ Jain Education Inte गेण ताव सचित्तदेसमट्टिया लोणं वा कञ्जनिमित्तेण दिष्णं, मग्गिएण अणाभोगेण खंडं मग्गियं लोणं देञ्ज तस्सेव दायवं, नेच्छेज ताहे पुच्छि कओ तुम्भेहिं आणियं ? जत्थ साहइ तत्थ विगिंचिजह, न साहेज न जाणामोत्ति वा भञ्जा ताहे उवलक्खेवं वण्णगंधरसफासेहिं, तत्थ आगरे परिद्वविजइ, नत्थि आगरो पंथे वा वर्द्धति विगालो वा जाओ ताहे सुकगं महुरगं कप्परं मग्गज, ण होज कप्परं ताहे वडपत्ते पिप्पलपत्ते वा काऊण परिट्ठविजइ १ । आउक्काए दुविहं गहणं आयाए णायं अणायं च, एवं परेणवि णायं अणायं च, आयाए जाणंतस्स विसकुंभो हणियो विसफोडिया वा सिंचियवा विसं वा खइयं मुच्छाए वा पडिओ गिलाणो वा, एवमाइसु (कज्जेसु) पुवमचित्तं पच्छा मीसं अहुणाधोयं तंदुलोदाइ आउरे कज्जे सचित्तंपि, कए कज्जे सेसं तत्थेव परिठविजइ, न देख ताहे पुच्छिअइ-कओ आणीयं ? जइ साहेइ तत्थ परिठयेवं आगरे, न साहेजा न वा जाणेजा पच्छा वण्णाईहिं उवलक्खेउं तत्थ परिद्ववेइ, अणाभोगा कोंकणेसु पाणियं अंबिलं च एत्थ वेतिआए अच्छइ, अविरइया मग्गिया भणइ - एतो गिण्हाहि, तेण अंबिलंति पाणियं गहियं णाये तत्थ भेजा, अह न देइ ताहे आगरे, एवं अणाभोगा आयसमुत्थं, परसमुत्थं जाणंती अणुकंपाए देइ-ण एते भगवंतो पाणियस्स रसं जाणंति हरदोदगं दिजा, डिणी याए वा देखा, एयाणि से वयाणि भजंतुति, णाए तत्थेव साहरियवं, न देख जओ आणियं तं ठाणं पुच्छिञ्जइ, तत्थ ऊ परिविज, न जाणेजा वण्णाईहिं लक्खिजइ ताहे णइपाणियं णईए विगिंचेजा, एवं तलागपाणियं तलाए, अगडवाविसरमासु सासु विगिंचिज, जइ सुकं तडागपाणियं वडपत्तं पिप्पलपत्तं वा अड्डेऊण सणियं विगिंचर, जह उज्जरा न जायंति, पत्ताणं असईए भायणस्स कण्णा जाव हेट्ठा सणियं उदयं अलियाविजड़ ताहे विर्गिचिजड़, अह कूओदयं ताहे जह For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600032
Book TitleAvashyakaniryuktidipika Part_2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManekyashekharsuri
PublisherVijaydansuri Jain Granthmala Surat
Publication Year1945
Total Pages410
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size20 MB
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