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पंचसं
टीका
॥ १४२ ॥
अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमनिगोया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, अनवसिद्धिया प्रांतगुला, परिवडियसम्म दिडी अांतगुणा, सिद्धा अांतगुणा, बायरवणस्सइकाइया पज्जत्तगा अतगुणा, बायरा पज्जतगा विसेसादिया, बायरवलस्सइकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बायरा अपज्जत्तगा विसेसादिया, बायरा विसेसाहिया, सुहुमवणप्फइकाइया अपज्जत्तगा - संखेज्जगुणा, सुहुम पज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमवणस्सइकाइया पतगा संखेकगुला, सुहुमज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमा विसेसाहिया, जवसिद्धिया विसेसादिया, निगोयजीवा विसेसादिया, वलस्सइजीवा विसेसाहिया, एगिंदिया विसेसाहिया, तिरिरकजोलिया विसेसाहिया, मित्रादिठ्ठी विसेसादिया, अविरया विसेसाहिया, सकसाई विसेसादिया, नम
विसेसाहिया, सजोगी विसेसाहिया, संसारठा विसेसादिया, सङ्घजीवा विसेसादिया इति ' ॥ १५ ॥ इह पूर्व रत्नप्रजानारकाणां जवनपतिदेवानां सौधर्मकल्पगतदेवानां च परिमाम संख्येयगिताकाशप्रदेशराशि प्रमाणं सामान्येनोक्तं, तत्र न ज्ञायते के बहवः के स्तोका इति तत्र परस्परं विशेषमाद —
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नाग १
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