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अस्त्रे से मुण्डन कराने वाले साधु साध्वी को महीनें महीने के बाद मुण्डन कराना चाहिये । यदि कैंची से कतरवावे तो पन्द्रह दिन के पश्चात् गुप्त रीति से कतरवाना चाहिये। लोच द्वारा मुण्ड होने वाले छः महीने मुण्ड होना चाहिये तथा वृद्ध स्थवीर बुढ़ापे
से जर-जरित हो जाने के कारण एक वर्ष के पश्चात् लोच कराना चाहिये । 7 (२८५) चातुर्मास में रहे हुए साधु साध्वी को पर्युषण के पश्चात् कलेश उत्पन्न करने वाली वाणी न बोलनी
चाहिये। जो साधु-साध्वी पर्युषण के पश्चात् भी कलेशकारी वचन बोले तो उन्हें कहना चाहिये कि हे आर्य ! इस प्रकार की वाणी बोलने का आचार नहीं है। आप जो बोलते है सर्वथा अनुचित है, अपना ऐसा आचार नहीं हैं । इसके
बाद भी कलेशकारी वचन बोले तो उसे संघ से निकाल देना चाहिये । ॐ (२८६) वास्तव में यहाँ चातुर्मास में रहे हुए साधु-साध्वी परस्पर कलहकारी शब्द व्यवहार करें तो उन्हें छोटे बड़े
को और बड़ा छोटे को खमाना चाहिये। | क्षमा देना और लेना, उपशान्त होना और करना सुमति पूर्वक रागद्वेष के अभाव पूर्वक सूत्र और अर्थ संबंधी संपृच्छना या समाधि प्रशन विशेष होने चाहिये ।
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