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• निष्प्रयोजन बांधते नहीं है, आसनो को प्रमाणों पेत रखते है, शय्या या आसनों को धूप में रखते है, पांच समितियों में
सावधान रहते है। बारबार प्रतिलेखना करते हैं और ध्यान पूर्वक प्रमार्जन करते हैं उनको इस प्रकर संयम आराधना करना सरल हो जाता हैं । (२८२) चातुर्मास में रहे हुए साधु-साध्वी को स्थंडिल शौच मात्रा लघुनीति के लिये तीन जगह प्रतिलेखनी कल्पती है। जिस प्रकार वर्षा ऋतु में किया जाता है उस प्रकार सर्दी और गर्मी में नहीं किया जाता है।
प्र. हे भगवान ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? उ. चातुर्मास में जीव, तृण बीज पनक और बीज से उत्पन्न हुई हरित ये सब अधिक पैदा होती है। अतः इस प्रकार कहा जाता है। (२८३) चातुर्मास में साधु साध्वी को तीन पात्र रखने कल्पते है। एक शौंच हेतु एक लघुशंका के लिये और एक श्लेष्म के लिये ।
(२८४) चातुर्मास में रहे हुए साधु-साध्वी को अवश्यमेव लोच कराना चाहिये। चातुर्मास (आषाढ़) के बाद लंबे केश तो दूर रहे परन्तु गाय के रोम जितने भी केश रखने नहीं कल्पते। अर्थात् वर्षा ऋतु की बीस रात सहित एक मास की अन्तिम रात को गाय के रोम जितने भी केश नहीं रखने चाहिये।
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