________________
卐000000000
जो उपशान्त होता है वह आराधक बनना चाहिए है, जो उपशान्त नहीं बनता वह विराधक बनता है अतः अपने आप 卐 उपशान्त बनना चाहिए ।
प्र. हे भगवान ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? उ. श्रमणत्व का सार उपशम ही हैं, इसलिये ऐसा कहा जाता है।
२८७) चातुर्मास रहे हुए साधु-साध्वी को तीन उपाश्रय ग्रहण करने कल्पते हैं। तीन में से दो उपाश्रय का बारबार सफाई करनी चाहिये और जिसका प्रयोग कर रहे है- उसकी प्रतिदिन विशेष प्रकार से सफाई करनी चाहिये।
50000
MINIMIMINAMUMMINI
(२८८) चातुर्मास में रहे हुए साधु-साध्वी को अन्यतर दिशाओं का (अवग्रह करके) अमुक दिशा और अनुदिशा अग्नि आदि विदिशाओं का अवग्रह करके अमुक दिशा या विदिशा में आहारार्थे जाता हूँ ऐसा दूसरे साधुओं को कहकर जाना उचित है।
प्र. हे भगवान ! ऐसा क्यों कहा जाता है ?