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है। फिर जब हेमन्त ऋतु का चौथा महीना, सातवा पक्ष यानी फाल्गुण वदि ग्यारस पक्ष में दिन के पूर्व भाग में पुरिमताल नगरी के बाहर शकट नामक उद्यान में वट के उत्तम वृक्ष के नीचे रहकर ध्यान धारण करते हुए उन्होंने निर्जल अट्टम (तीन उपवास) तप किया हुआ था उस वक्त उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का योग आने पर इस प्रकार ध्यान करते हुए उन्होनें अनन्त ऐसा उत्तम केवलज्ञान -दर्शन प्राप्त किया ।
(१९७) कौशलिक अर्हन श्री ऋषभ के चौराशी गण और चौराशी गणधर थे।
कौशलिक अर्हन् ऋषभ के ऋषभ सेन प्रमुख चौराशी हजार श्रमणों की, ब्राह्मी विगेरे तीन लाख आर्याओं की, श्रेयांस प्रमुख • तीन लाख पांच हजार श्रावकों की, सुभद्रा प्रमुख पांच लाख चोपन हजार श्राविकाओं की, जिन नहीं परन्तु जिन सद्दश चार हजार सात सो पचास चौदह पूर्वधरो की, नव हजार अवधि- ज्ञानियों की, वीश हजार केवल ज्ञानियों की, वीश हजार छः सौ वैक्रिय लब्धिवालों की, ढाई द्वीप में और दो समुद्र में रहने वाले पर्याप्त संज्ञि पंचेद्रिय के मनोभावों को जानने वाले विपुलमति ज्ञान वाले बारह हजार छः सौ पचास, वादियों की उतकृष्ट संपदा थी । कौशलिक अर्हन् ऋषभ के वीश हजार शिष्य सिद्ध हुए और उनकी चालीस हजार आर्याएँ सिद्ध हुई । कौशलिक अर्हन् ऋषभ के बाइस हजार नौ सौ कल्याण गति वाले यावत्
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