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भविष्य में कल्याण पाने वाले ऐसे अनुत्तरौपपातिकों की उत्कृष्ट संपदा हुई।
(१९८) अर्हन् कौशलिक श्री ऋषभ प्रभु को दो प्रकार की अंतकृद् भूमि हुई । यानी श्री ऋषभदेव प्रभु के शासन में मोक्ष रगामियों को मोक्ष में जाने के काल की मर्यादा दो प्रकार से हुई । वह इस प्रकार युगांतकृद् भूमि व पर्यायांतकृद् भूमि । युग
यानी गुरू, शिष्य, प्रशिष्यादि क्रमानुसार वर्तते पट्टधर पुरूष, उनके द्वारा प्रमित-मर्यादित जो मोक्षगामियों का मोक्ष में जाने का काल वह युगान्तकृद् भूमि कहलाती है। पर्याय यानी प्रभु को केवलज्ञान उत्पन्न होने के काल, उस काल के आश्रय से मोक्षगामियों का मोक्ष में जाने का काल, वह पर्यायांतकृद् भूमि कही जाती है । श्री ऋषभदेव प्रभु से लगाकर उनके पट्टधर - असंख्यात पुरूष तक मोक्ष मार्ग चालु रहा वह युगान्तरकृद भूमि । अब पर्यायन्त कृत भूमि बताते हैं अन्तमुहूर्त का है केवलीपने 3 का पर्याय जिनका ऐसे ऋषभदेव प्रभु के होने पर किसी केवली ने संसार का अन्त किया यानी श्री ऋषभदेव प्रभु को केवल
ज्ञान उत्पन्न होने के बाद अन्त मुहूर्त में मरूदेवी माता अंतकृत् केवलि होकर मोक्ष में गये, अर्थात् श्री ऋषभदेव प्रभु को केवलज्ञान उत्पन्न होने के बाद अन्तमुहर्त में मोक्ष मार्ग प्रारंभ हुआ।
(१९९) उस काल और उस समय में अर्हन् कौशलिक श्रीऋषभदेव प्रभु बीस लाख पूर्व तक कुमारावस्था में रहकर त्रेसठ लाख पूर्व तक राज्यावस्था में रहकर, इस तरह तिरासी लाख पूर्व तक गृहस्थावास में रहकर, एक हजार वर्ष तक छद्मस्थ1623
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