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________________ CHINHAIRMAN विनंती की । इस प्रकार पूर्व वर्णित सारा वर्णन जान लेना । तत्पश्चात् ग्रीष्मकाल का प्रथम मास, पहला पक्ष यानी ॐ चैत्र मास के कृष्णपक्ष की अष्ठमी तिथि में दिन के पिछले प्रहर में सुदर्शना नाम की पालखी में रहे हुए रत्न-जड़ितR सुवर्ण के सिंहासन पर पूर्व दिशा के सन्मुख बैठे हुए, मनुष्य व असुरों सहित पर्षदायानी लोगों के समुदाय के द्वारा सम्यक् प्रकार से पीछे गमन कराते (अनुसराते) हए कौशलिक अर्हन् ऋषभ विनीता नगरी से निकलकर जिस ओर सिद्धार्थ नामक वन उद्यान है, अशोक का उत्तम पेड़, उस ओर आते हैं, आकर अशोक के उत्तम वृक्ष के नीचे शिबिका को रूकवाते हैं इत्यादि सब पूर्व कथनानुसार यावत् 'स्वयं ही चार मुष्टि लोच करते है वहाँ तक कहना । उस समय उन्होंने जल बिना का छट्ट (दो उपवास) तप किया हुआ था, अब उस समय में उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का योग आने पर उग्र, भोग राजन्य और क्षत्रियवंश के चार हजार पुरूषों के साथ एक मात्र देवदूष्य वस्त्र लेकर वे मंडित होकर गृहवास से निकलकर अनगार दशा को स्वीकारा । (१९६) कौशलिक अर्हन् श्री ऋषभ ने एक हजार वर्ष तक हमेशा अपने शरीर की ओर ममत्व छोड़ दिया था, 160 wwwrainelibrary.org
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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