SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आरंभ के कार्य बंद करवाने इत्यादि अधिकार छोडकर (क्योंकि उस समय कैदखाने व व्यापार प्रवृति नहीं थी) शेष सर्व उसी अनुसार कहना अर्थात् श्री महावीर स्वामी के संबंधी पाठ के अनुसार समझना। (१९४) कौशलिक अर्हन् ऋषभ, जिनके पांच नाम इस प्रकार कहे जाते है- १. 'ऋषभ' २. 'प्रथम राजा' ३. 5'प्रथम भिक्षाचर' ४. 'प्रथम जिन' ५. 'प्रथम तीर्थकर' ।। (१९५) कौशलिक अर्हन् ऋषभ दक्ष थे, दक्ष प्रतिज्ञा वाले थे, उत्तम रूप वाले, सर्व गुणोपेत, भद्र और विनयवान थे । उन्होंने इस प्रकार बीश लाख पूर्व वर्ष कुमारावस्था में व्यतीत किये, उसके बाद वेसठ लाख पूर्व वर्ष तक राज्यावस्था में बिताये, राज्यावस्था में रहते उन्होंने जिनमें गणित प्रधान है, और शकुनरूत यानी पक्षियों की भाषा जानने की कला है, अन्त में जिनमे, ऐसी बहेत्तर कलाओं को, स्त्रियों की चौसठ कला और सौ शिल्प ये तीन का प्रजा के हित के लिये उपदेशे-सिखाय, इन सबको सिखाने के पश्चात् सौ राज्यों में सौ पुत्रों को अभिषिक्त किये है । उसके पश्चात् लोकान्तिक देवों ने अपने शाश्वत आचारानुसार भगवान को दीक्षा का अवसर बताते हुए 159 canon international For Private Personal use only
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy