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________________ 3 वर्ष विगेरे पाठ श्री मल्लीनाथ प्रभु की तरह समझना । 卐 (१७९) अर्हन् श्री वासुपूज्यस्वामी प्रभु के निर्वाण काल से छयालीस सागरोपम व्यतीत हुऐ । उसके बाद 2 पैंसठ लाख वर्ष विगेरे पाठ श्री मल्लीनाथ प्रभु की तरह समझना । * (१८०) अर्हन् श्री श्रेयांसनाथ प्रभु के निर्वाण काल से एक सौ सागरोपम व्यतीत हुऐ । उसके बाद पैंसठ लाख वर्ष इत्यादि पाठ श्री मल्लीनाथ प्रभु की भांति समझना । (१८१) अर्हन् श्री शीतलनाथ प्रभु के निर्वाण काल से बयालीस हजार तीन वर्ष साड़े आठ मास न्यून एक कोटि सागरोपम व्यतीत हुऐ । उस समय में श्री महावीर प्रभु का निर्वाण हुआ । उसके बद भी नौ सो साल व्यतीत हए और दसवे सैके का यह अस्सी वा संवत्सर काल चल रहा है। (१८२) अर्हन् श्री विधिनाथ प्रभु के निर्वाण काल से दश कोटि सागरोपम व्यतीत हए, शेष पाठ श्री शीतलनाथ प्रभु की तरह समझना । वह इस प्रकार श्री विधिनाथ प्रभु के निर्वाण के बाद बयालीस हजार तीन वर्ष और साडे 00000000 1495 For Private Personal use only ww
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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