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________________ (卐000 Bअस्सीवां वर्ष जा रहा है। इसी प्रकार श्रेयांसनाथ प्रभु तक समझना (१७४) अर्हन् श्रीकुंथुनाथ प्रभु के निर्वाण काल से एक पल्योपम क चौथा भाग व्यतीत हुआ । उसके बाद पैंसठ लाख वर्ष विगेरे पाठ श्री मल्लीनाथ प्रभु की तरह समझना । (१७५) अर्हन् श्री शान्तिनाथ प्रभु के निर्वाण काल से पौना पल्योपम व्यतीत हुआ । उसके बाद पैंसठ लाख वर्ष विगेरे पाठ श्री मल्लीनाथ प्रभु की तरह समझना । (१७६) अर्हन् श्री धर्मनाथ प्रभु के निर्वाण काल से तीन सागरोपम व्यतीत हुआ । उसके बाद पैंसठ लाख वर्ष विगेरे पाठ श्री मल्लीनाथ प्रभु की तरह समझना । 7 (१७७) अर्हन् श्री अनंतनाथ प्रभु के निर्वाण काल से सात सागरोपम व्यतीत हुऐ । उसके बाद पैंसठ लाख वर्ष विगेरे पाठ श्री मल्लीनाथ प्रभु की तरह समझना । (१७८) अर्हन् श्री विमलनाथ प्रभु के निर्वाण काल से सोलह सागरोपम व्यतीत हऐ । उसके बाद पैंसठ लाख *148 000000000000 है
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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