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________________ 40 500 40 500 40 4500 40 (१७०) अर्हन् अरिष्ट नेमिप्रभु के निर्वाण काल से पांच लाख चोरासी हजार और नौ सौ वर्ष व्यतीत हुए और पंचाशीवें हजार के दसवे सैके का यह अस्सीवा संवत्सर काल जाता है। (१७१) अर्हन् श्री मुनिसुव्रत स्वामी के निर्वाण काल से ग्यारह लाख चौराशी हजार और नौ सौ वर्ष व्यतीत हुए और दसवे सैके का यह अस्सीवा संवत्वर काल जा रहा है। (१७२) अर्हन श्रीमल्लीनाथ प्रभु के निर्वाण काल से पैंसठ लाख चोरासी हजार और नौ सौ वर्ष व्यतीत सैके का यह अस्सीवा संवत्सर काल जा रहा है। International हुए, (१७३) अर्हन् श्रीअरनाथ प्रभु के निर्वाण काल से एक हजार करोड़ वर्ष व्यतीत हुए । अवशेष पाठ श्री मल्लीनाथ प्रभु की तरह समझना, और वह इस प्रकार है- अर्हन् अरनाथ प्रभु के निर्वाण गमन पश्चात् एक हजार क्रोड वर्ष व्यतीत होने पर श्री मल्लीनाथ प्रभु का निर्वाण और अर्हन् श्री मल्लीनाथ प्रभु के निर्वाण बाद पैंसठ लाख चोरासी हजार वर्ष बीत जाने पर श्री महावीर प्रभु का निर्वाण पाये उसके बाद नौ सो अस्सी वर्ष होने पर अब यह दसवे सैका का For Private & Personal Use Only दसवे 4050140500 40 500 40
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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