________________
*
वाले, अत्यन्त सुन्दर रुपवाले, सर्व प्रकार के गुणों से युक्त, सरल प्रकृति वाले और पूज्यों का विनय करने वाले थे। भगवान तीस वर्ष तक गहवास में रहकर, जिनका कहने का आचार है ऐसे लोकांतिक देवो ने आकर उस प्रकार की विशिष्ठ गुणवाली इष्टवाणी से इस प्रकार कहा :
हे नंद! आप जय पाओ। जय पाओ। हे कल्याणकारी! आपका जय हो! जय हो! उन देवोने इस प्रकार से जय जय शब्दों का प्रयोग किया।
१५३) पुरुष प्रधान श्री पार्श्वनाथ मनुष्य में उचित ऐसे गृहस्थ धर्म यानी विवाहादि के पहले भी अनुत्तर यानी अभ्यन्तर अवधि होने से उत्कृष्ट उपयोग वाला केवलज्ञान की उत्पत्ति हो वहाँ तक स्थिर रहने वाला अवधिज्ञान और अवधिदर्शन था। जिससे दीक्षा का समय जानते थे, जानकर सुवर्णादि सर्व प्रकार का धनयाचकों को देते हैं अर्थात वार्षिक दान देते है। यावत् अपने गोत्रियों को सुवर्णादिक धन हिस्से मुताबिक बांट देते है। उसके पश्चात् हेमन्त ऋतु का दूसरा महीना, तीसरा पक्ष याने पोष कृष्ण पक्ष की एकादसी के दिन पहले प्रहर में याने चढ़ते पहोर में विशाला नाम की पालखी में रत्न जड़ित सुवर्ण के सिंहासन पर पूर्वदिशा सन्मुख बैठे हुए और सुर, मनुष्य तथा असुर पर्षदा
00000000000