SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 卐 ३ ॥जी योग आने पर गर्भतया उत्पन्न हुए। १५०) पुरुष प्रधान अर्हन् श्री पार्श्वनाथ मति, श्रुत व अवधि इन तीन ज्ञान सहित थे। तब "मै देवविमान से च्यपूँगा इस प्रकार श्री पार्श्वप्रभु जानते है। “ मै च्यवित हो रहा हूं ," यह जानते नहीं थे, क्योकिं वर्तमान काल एक समय का अति सूक्ष्म है। "मै च्यवित हुआ ऐसा जानते है इत्यादि सारा वृतांत श्री भगवान महावीर चरित्रानुसार जानना। १५१) उस काल और उस समय में हेमन्त ऋतु का दुसरा महीना, तीसरा पक्ष यानी पोष महीने का कृष्ण पक्ष उसकी दसवीं तिथि में नौ मास और साढ़े सात दिन व्यतीत होने पर, मध्यरात्रि में विशाखा नक्षत्र से चन्द्र का योग होने पर, आरोग्यवाले अर्थात् जरासी भी पीड़ा से रहित ऐसे उस वामादेवी ने आरोग्य याने बाधा रहित ऐसे पुत्र को जन्म दिया। जिस रात्रि में पुरुषों में प्रधान ऐसे अर्हन् श्री पार्श्वनाथ जन्मे, वह रात्रि प्रभु के जन्म महोत्सव हेतु नीचे उतरते व ऊपर चढ़ते हए अनेक देव-देवियों से यावत् मानो अतिशय संकुचित न हुई हो। तथा हर्ष के कारण फैलते हुए हास्यादि अव्यक्त शब्दों से मानो कोलाहल (शोरगुलमय) न हुई हो ऐसी हो गई। शेष वृतांत श्री भगवान महावीर के चरित्र की तरह ही समझना। विशेष में भगवान का नाम पार्श्व रखा था। १५२) पुरुष प्रधान अर्हन् श्री पार्श्वनाथ दक्ष यानी सर्व कलाओं में कुशल थे। प्रतिज्ञा का सम्यक् प्रकार से निर्वाह करने TOP-1005000000000 126
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy