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परुषादानीय अरिहंत पार्श्वनाथ चरित्र | १४८) उस काल और उस समय में पुरुषों में प्रधान ऐसे अर्हन् श्री पार्श्वनाथ प्रभु के पांचो कल्याणक विशाखा नक्षत्र में हुए। अर्थात् उनके जीवन के पांचो प्रसंग विशाखा नक्षत्र में आये हुए थे। वो इस प्रकार, १) वे पार्श्वनाथ अरिहंत विशाखा नक्षत्र में च्यवे, याने गर्भ में आये, २) विशाखा नक्षत्र में ही उन का जन्म हुआ, ३) विशाखा नक्षत्र में मुण्ड बनकर, गृहवास
का त्यागकर उन्होंने अनगार स्थिति याने दीक्षा स्वीकार की, ४) विशाखा नक्षत्र में ही उनको अनंत, उत्तमोत्तम, अविनाशी, | किसी वस्तु से स्खलना न पाए ऐसा, समस्त आवरण रहित, समस्त पर्यायो सहित सभी वस्तुओं को बतानेवाला, प्रधान
केवलज्ञान और केवलदर्शन उन्पन्न हुआ, और विशाखा नक्षत्र में ही उनका निर्वाण याने मोक्ष हुआ।
१४९) उस काल और उस समय में पुरुष प्रधान अर्हन श्री पार्श्वनाथ, जो इस ग्रीष्मकाल का पहला मास, पहला पक्ष यानी प्रचैत्र मास का कृष्णपक्ष, उसकी चौथ की रात में, बीस सागरोपम की स्थितिवाले दसवें प्राणत देवलोक से अन्तर रहित आयुष्य में पूरा होने पर दिव्य आहार, दिव्य जन्म और दिव्य शरीर छोड़कर तुरन्त ही च्यवकर यहां ही जंबूद्वीप नाम के द्वीप में भारत की पावन भूमि वाराणसी नगरी में अश्वसेन राजा की वामादेवी पटराणी की कुक्षि में मध्यरात्रि के समय विशाखा नक्षत्र में चन्द्र का
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