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________________ श्रीकल्प भोजयित्वा मित्र-ज्ञाति-सन्न-सम्बन्धि-परिजन-समक्षम् इदमेतद्रूपं वचनं वदतः-यत् प्रभृति च खलु अस्माकमयं दारको गर्भ व्युत्क्रान्तः, तत्प्रभृति च खलु इदं कुलं विपुलेन हिरण्येन सुवर्णेन धनेन धान्येन विभवेन ऐश्वर्येण ऋद्धया खलु सिद्धया खलु समृदया खलु सत्कारेण सम्मान पुरस्कारेण राज्येन राष्ट्रेग बलेन वाहनेन कोषेग कोष्ठागारेण पुरेण अन्तःपुरेण जनपदेन जानपदेन यशोवादेन कीर्तिवादेन वर्णवादेन शब्दवादेन श्लोकवादेन स्तुतिवादेन विषुल-धन-कनक-रत्न-मणि-मौक्तिक-शङ्क-शिलाप्रवाल-रक्तरत्नादिकेन सत्स्वापतेयेन प्रीतिसत्कारसमुदयेन अतीवातीच परिवं, तद् भवतु खलु अस्य दारकस्य गुण्यं गुण निष्पन्न नामधेयं 'वर्धमान' इति कृत्वा भगवतो महावीरस्य विधमान' इति नामधेयं कुरुतः। श्रमणो भगवान् महावीरो गोत्रेग काश्यपः । तस्य खलु इमानि 11८५॥ सम्बन्धीजनों और परिजनों को भोजन कराया। फिर मित्रों, ज्ञातिजनों. स्वजनों, सम्बन्धीजना और __ परिजनों के समक्ष इस प्रकार का यह वचन कहा-जब से हमारा यह बालक गर्भ में आया, तभी से यह कुल विपुल हिरण्य, सुवर्ण, धन, धान्य, विभव, ऐश्वर्य, ऋद्धि, सिद्धि, समृद्धि, सन्मान, पुरस्कार, राज्य, राष्ट्र, बल, वाहन, कोप, कोष्ठागार (कोठार), पुर, अन्तःपुर, जनपद, जानपद, यशोवाद, कीर्ति वाद, वर्णवाद, शब्दवाद, श्लोकवाद, स्तुतिवाद से तथा विपुल, धन, स्वर्ण, रत्न, मोती, शंख, शिला, प्रवाल, लालरत्न आदि वास्तविक सम्पत्ति से और प्रीति तथा सत्कार की प्राप्ति से खब-खूब वृद्धि को प्राप्त हुआ है। अत एव इस बालक का गुणमय गुणनिष्पन्न 'बर्द्धमान' नाम हो। इस प्रकार कह कर भगवान महावीर का 'वर्द्धमान' नाम रक्खा। भगवतो नामकरणम्. મુખવાસ લેવા એકત્રિત થયાં, ત્યારે સવની સમક્ષ, રાજા સિદ્ધાર્થે જાહેર કયુ” કે જ્યારથી આ બાળક ગર્ભમાં माव्यो छे त्याथी बि२९५-सु -धन-धान्य-वैभव-मेश्व-द्धि-सिद्धि-समृद्धि-स.२-सन्मान-५२२६॥२राय-राष्ट्र-मण-बान-प-310810२ (8181२)-१२-मत:पुर-१-५४- ५६-यशवाह-श्रीतिवा-१६१४-०४पाह- वा-स्तुतिवामा तम yिa-धन-सुवा-२ल-भाती- -परवाणi-AARI-aaReल माहि वास्तविक સંપત્તિમાં, ઉત્તરોત્તર વધારે થતજ ગમે છે. દિન-પ્રતિદિન આનંદની વૃદ્ધિ થતાં, અમે તેનું નામ ગુણમય गुनियन भान' रामीको छोणे. ॥८५॥ Jain Education n ational For Private & Personal Use Only VAR Lealww.jainelibrary.org
SR No.600024
Book TitleKalpasutram Part_2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1959
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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