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________________ श्रीकल्प मञ्जरी तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य भगवन्तं तीर्थकरं मातुः पार्श्वे स्थापयति, स्थापयित्वा तीर्थकरमातुः अवस्वापनी निद्रां प्रतिसंहरति । एवं भगवतस्तीर्थकरस्य जन्ममहोत्सवं कृत्वा सर्वे इन्द्राः सर्वे देवाश्च देव्यश्च यस्यामेव दिशि प्रादुर्भूताः तामेव दिशं प्रतिगताः ॥मू० ६६|| कल्पटीका-'तए णं सव्वे इंदा' इत्यादि। ततः शक्रेन्द्रस्य निजापराधक्षमणानन्तरं खलु, सर्वे इन्द्राः हर्षवशविसर्पद्धृदयाः आनन्दोत्फुल्लमनसः सन्तः सर्वद्धर्या. यावत्पदेन 'सवद्युत्या सर्वबलेन सर्वसमुदयेन सर्वादरेण टीका सर्वविभूत्या सर्वसंभ्रमेण सर्वाऽऽरोहैः सर्वपुष्पगन्धमाल्यालङ्कारविभूषया सर्वदिव्यत्रुटितनिनादेन महत्या ऋद्धया । अच्युतेन्द्रादिव्य गति से यावत् जहाँ भगवान् तीर्थकर का जन्म नगर था, जहाँ जन्म-भवन था, और जहाँ तीर्थकर मादिकृतभगकी माता थीं, वहीं आये। आकर भगवान् तीर्थकर को माता के पास स्थापित कर दिया। स्थापित करके सोए वदभिषेकः, तीर्थकर की माता की अवस्वापनी निद्रा को दूर कर दिया। शक्रेन्द्रस्य .. इस प्रकार भगवान् तीर्थकर का जन्ममहोत्सव करके सभी इन्द्र, सभी देव, और सभी देविया भगवन्नामजिस दिशा से आये थे उसी दिशा में चले गये ।।०६६।। करणं, सर्व देवानुगतटीका का अर्थ-'तए णं' इत्यादि। इन्द्र के अपना अपराध खमा लेने के बाद, सभी इन्द्रोंने, हर्षवश-विकसित-चित्त- शकेन्द्रस्य वाले होकर, सब ऋद्धि से, सब धुति से, सब बल से, सब समुदय से, सब आदर से, सर्व विभूति से, त्रिशलासंभ्रम (त्वरा) से, समस्त अद्भुत-दिव्य वाद्यों के घोष से, अच्युतेन्द्र आदि के क्रम से भगवान् तीर्थकर पावें का अभिषेक किया। भगव स्थापन, ઘોષણા અને દિવ્યનાદ કરતા કરતા, જ્યાં જન્મનગર હતું, જ્યાં જન્મભવન હતું, જ્યાં માતા નિદ્રાધીન કે सर्वदेवानां स्वस्वस्थाથયેલાં હતાં તે સ્થાને તેઓ બધા આવી પહોંચ્યા, ને ભગવાનને માતાની ગોદમાં મૂક્યા. ત્યારબાદ માતાને આવ नगमनम् . રણ કરી રહેલા અવસ્થાપની નિદ્રાને દૂર કરી સર્વ દેવ-દેવીઓ જે સ્થાનેથી આવ્યા હતા, તે સ્થાને જવા રવાના च्या. (२०६६) ॥५९॥ न म -'तपणं त्या न्यारे शहेन्द्र, मासमय घटनामाथी विभुत थया, नये माशातनानी भाटे પ્રભુની માફી માગી, ત્યારે જેમ દેણદાર અણુમાંથી મુક્ત થાય ત્યારે છેલ્લો શાંતિને શ્વાસ ખેંચે છે, તેમ તેનું હૃદય ज स थ भयु, ने अपनी भा५४ प्रतित-पहने GAL RA... ww.jainelibrary.org
SR No.600024
Book TitleKalpasutram Part_2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1959
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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